आज मैं थी फुरसत में सोचा क्या खास करू मै अचानक फिर याद आया क्यों खुद से ना मुलाकात करू मै। ढूंढा जो अपने अंदर वो लड़की गायब आई नजर जो खिलखिलाती थी बेपरवाह वो खुद से भी करती थी प्यार।। थी उसकी जगह बैठी कोई अनजानी अजनबी जो दूसरो के चाह में खुद को […]Continue Reading
कविता
आसान राहे कब उलझने लगी पता ही नहीं चला कब सब कुछ बदल गया क्यों सब कुछ इतना मुश्किल हो गया समझना…. समझाना हालात जज्बात धीरे-धीरे सब बदल गया वो प्यार वो अपनापन जाने कहां गुम गया बस रह गया केवल अवसाद स्वार्थ से ही बनते अब रिश्ते बनते टूटते और बिखरते जब तक दिल […]Continue Reading
वाराणसी।एक व्यक्ति की मौत के 16 साल बाद उसका हस्ताक्षर कर उसे एक फर्म में पार्टनर बनाने का मामला सामने आया है। दी बनारस बार एसोसएिशन के पूर्व महामंत्री नित्यानंद राय ने इसकी शिकायत सहायक निबंधक फर्म सोसायटी एवं चिट्स के रजिस्ट्रार से की। शिकायत के आधार पर रजिस्ट्रार ने फर्म के 3 अन्य साझीदारों […]Continue Reading
लखनऊ। लखनऊ के जाने-माने इतिहासकार पद्मश्री डॉक्टर योगेश प्रवीण का सोमवार को लखनऊ में निधन हो गया। वे 83 साल के थे। बताया जा रहा है कि सोमवार की दोपहर वे अपने घर पर थे। करीब डेढ़ बजे उन्हें सांस लेने में तकलीफ ज्यादा होने लगी। एंबुलेंस को बुलाया गया। लेकिन करीब 2 घंटे बाद […]Continue Reading
बिखरे है जमी पर कुछ सूखे पत्ते जो थे अभी कुछ सूखे कुछ मटमैले जिन्हें देख कहते थे कभी नई कोपले आई गिरते है आज वही पेड़ो से बन पतझड़ की गवाही खेला था जिनकी छांव में कभी बचपन छीन रही छांव सूखे पत्ते बन जो देते थे कभी इतिहास की गवाही बिखरे पड़े हैं […]Continue Reading
वाराणसी । कलयुगी दैत्य कोरोना का काम पूरी तरह से तमाम कर देने के उद्देश्य से इस वर्ष धुरंधर हास्य महोत्सव 16 वां का सुभारंभ सुपर्णखा द्वारा कोरोना का नाक-कान काट कर किया जाएगा। हास्य के सतरंगी विधाओं से युक्त काशी के इस एकमात्र महोत्सव में इस वर्ष भी हास्य नृत्य, मिमिक्री,हास्य प्रहसन, हास्य कवि […]Continue Reading
जब कनक की खनक अविरल हो जाए, जब अपना कद अपनों से उपर हो जाए, जब अपने से बेहतर ज्ञानी खाख छानते दिख जाएं, जब अपना अहं अपने ही भीतर संतुष्टि पाए, जब ज्ञनियों की अकड़ समझ न आए, जब प्रेमियों की अल्हड़ता समझ न आए, जब भक्त का समर्पण समझ न आए, तब समझ […]Continue Reading
शूद्र हूं मैं। शूद्र नहीं सवर्ण हूं मैं। एक पल के लिए लगा शूद्र हूं मैं। लगा जैसे समाज मुझे कुचलने के लिए तैयार बैठा है। पर मैनें हार ना मानी, वक्त को बदलने की मैने भी ठानी। मेरी खुशियां अभी कर्ज है वक्त पर। देखूंगी मैं भी कैसे करता है वक्त बेईमानी। कमजोर से […]Continue Reading
मैं अल्पविराम सी बस रुकीं हूं कुछ पल को खत्म न समझना मुझे कम ना आंकना मुझे अभी रवानी बाकी है अभी कहानी बाकी है कईयों बार रुकना सही है कुछ पल ठहरना तय है कुछ ताकत बटोर रही हूं खुद को टटोल रही हूं बहुत कुछ सहेजना है बहुत कुछ समेटना है समझना है […]Continue Reading