उत्तर प्रदेश कविता ब्लॉग

दूसरों की चाह में खुद को भूल गई….

आज मैं थी फुरसत में
सोचा क्या खास करू मै
अचानक फिर याद आया
क्यों खुद से ना मुलाकात करू मै।
ढूंढा जो अपने अंदर
वो लड़की गायब आई नजर
जो खिलखिलाती थी बेपरवाह
वो खुद से भी करती थी प्यार।।
थी उसकी जगह बैठी
कोई अनजानी अजनबी
जो दूसरो के चाह में
खुद को ही भूल गई।
पर वो अजनबी भी
भली लगी मुझे
कभी कभी दबी लगी मुझे
दायित्व और परंपराओं का करती निर्वाह,
अपनों से प्यार करती बेपनाह।
कभी संतुलन खोती तो कभी
रिश्तो में जान फुकती सी लगी मुझे।
वह अजनबी भी अपने अंदर
बांध रखी बेचैनी की पोटली भरकर
कब करूं, क्या करूं
इसने कहा, क्यों कहा,
उफ़! उब गई मै इसको देख कर।
अंदर अपने इस अजनबी
को रखना मजबूरी है
पर उस लड़की को
भी बुलाना जरूरी है।

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