आसान राहे कब उलझने लगी
पता ही नहीं चला कब
सब कुछ बदल गया
क्यों सब कुछ इतना मुश्किल हो गया
समझना…. समझाना
हालात जज्बात
धीरे-धीरे सब बदल गया
वो प्यार वो अपनापन
जाने कहां गुम गया
बस रह गया केवल
अवसाद
स्वार्थ से ही बनते अब रिश्ते
बनते टूटते और बिखरते
जब तक दिल को भाते
तब तक रिश्ते निभाते
जाने कब और क्यों
यह लोग यह रिश्ते
धीरे-धीरे इतने बदल जाते
लगते थे जो इतने मजबूत
जाने कब कांच की तरह
टुकड़े टुकड़े हो बिखर जाते
प्यार भरे रिश्ते
कसौटियो पर कसे जाते
जब दिल से उतर जाते……