वाराणसी। चैत्र नवरात्रि के पंचमी से सप्तमी महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर स्थित महाश्मशान नाथ मंदिर में श्रृंगार महोत्सव मनाया जाता हैं। सोमवार शाम को सप्तमी के दिन नगरवधुएं मंदिर में दर्शन पूजन किया। बाबा के सामने नृत्यांजलि प्रस्तुत किया । इस बार कोरोना संक्रमण के चलते कार्यक्रम को संक्षिप्त कर दिया गया था। हर बार की तरह इस बार नगरवधुएं जलती चिताओं के सामने नृत्य प्रस्तुत नहीं की और कार्यक्रम आठ बजे तक समाप्त कर दिया गया।
इस जन्म से मुक्ति की कामना
मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया आरती के पश्चात नगर वधुओं ने अपने गायन व नृत्य के माध्यम से परम्परागत भावांजलि बाबा को समर्पित किया। मन्नत मांगी की बाबा अगला जन्म सुधारे। ऐसा जीवन दोबारा हमें न मिले। वही उनके मन में यह भी भाव था कि बाबा भारत को महामारी से मुक्ति दिलाये।
चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को नगरवधुएं यहां जरूर आती हैं
गुलशन कपूर ने कहा कि यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है। यह कहा जाता है कि राजा मानसिंह द्वारा जब बाबा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। तब मंदिर में संगीत के लिए कोई भी कलाकार आने को तैयार नहीं हुआ था। ( हिन्दू धर्म में हर पूजन और शुभ कार्य में संगीत जरुर होता है।) उसी कार्य को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुखी हुए। यह संदेश काशी के नगर वधुओं तक पहुंचा। तब नगर वधुओं ने डरते डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता है तो काशी की सभी नगर वधूएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती है। यही से परंपरा की शुरुआत मानी जाती हैं।