वाराणसी। बिहार के कुदरा से ओडिशा ले जाए जा रहे 35 टन गेहूं के ट्रक सहित वाराणसी में गायब होने की घटना का पुलिस ने 88 घंटे बाद खुलासा कर दिया। गेहूं और ट्रक बदमाशों ने नहीं गायब किया था, बल्कि चालक ने ही अपने 3 साथियों की मदद से रामनगर इंडस्ट्रियल एरिया की एक फर्म को डेढ़ लाख रुपये में बेंच दिया था। पुलिस ने आरोपी चालक सहित 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर 35 टन गेहूं, डेढ़ लाख रुपये और ट्रक को जब्त कर लिया है। शुक्रवार की दोपहर चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया।
चंदौली जिले के ट्रांसपोर्टर ने दर्ज कराया था मुकदमा
चंदौली जिले के मुगलसराय थाना के सुभाष नगर निवासी ट्रांसपोर्टर कुलवेंदर सिंह ने बीती 28 जून की रात लंका थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। कुलवेंदर के अनुसार उन्होंने कुदरा से 35 टन गेहूं ओडिशा के कटक ले जाने की बुकिंग की थी। गेहूं ले जाने के लिए उन्होंने आजमगढ़ के तहबरपुर थाना के महुआर गांव निवासी विजय कुमार यादव को कहा। विजय ट्रक का मालिक और चालक दोनों है।
विजय कुदरा से गेहूं लेकर चला और एक हफ्ते बाद भी ओडिशा नहीं पहुंचा तो बुकिंग कराने वाले ने उन्हें फोन किया। इस पर उन्होंने विजय से संपर्क किया तो वह बताया कि रास्ते में ट्रक खराब हो गया था। इसके बाद फिर विजय का मोबाइल स्विच ऑफ हो गया। उन्होंने ट्रक की तलाश शुरू की तो पता लगा कि वाराणसी में डाफी टोल प्लाजा तक ट्रक आया है और इसके बाद वह नहीं दिखा। इस वजह से उन्होंने लंका थाने में तहरीर देकर मुकदमा दर्ज कराया। जांच शुरू हुई तो इंस्पेक्टर लंका महेश पांडेय और क्राइम ब्रांच प्रभारी अश्विनी पांडेय ने सर्विलांस की मदद से विजय को आजमगढ़ से पकड़ लिया। इसके बाद उसके 3 अन्य साथी पकड़े गए।
गेहूं लादने के साथ ही की थी चालाकी, बाद में बता देता लूट
पुलिस की पूछताछ में विजय ने बताया कि वह ट्रक में जब गेहूं लादने गया था तभी उसके मन में खोट था। इसलिए उसने ट्रक में फर्जी नंबर प्लेट UP50 CT0118 लगाई थी। वह उसके गांव का शुभम गुप्ता और वाराणसी के रामनगर के मच्छरहट्टा वार्ड के चंद्रप्रकाश शर्मा और विनोद कुमार मौर्या ने पहले ही तय कर रखा था कि गेहूं बेंच दिया जाएगा।
ट्रक लेकर वह डाफी टोल प्लाजा तक आया, वहां उसे चंद्रप्रकाश और विनोद मिले। चारों ने रामनगर इंडस्ट्रियल एरिया के एक मिल मालिक से गेहूं का सौदा डेढ़ लाख रुपये में तय किया। इसके बाद ट्रक की फर्जी नंबर प्लेट निकाल कर ओरिजिनल नंबर प्लेट लगा दिया। उसे पूरा विश्वास था कि कुलवेंदर सिंह फर्जी वाला नंबर पुलिस को देकर शिकायत करेगा और वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा। इसके साथ ही उसने अपने मोबाइल को भी हमेशा के लिए बंद कर दिया था। हालांकि वह अपने मोबाइल से जिन लोगों से नियमित बात करता था, सर्विलांस की मदद से पुलिस उन्हीं से उसका पता लगा कर उस तक पहुंच गई।