गोरखपुर। ‘जिस घर में एक कमाने वाला होता है, वो मर जाए तो घर का घर मर जाता है।’ ऐसी ही एक कहानी गोरखपुर में रहने वाले एक परिवार की है। पंचायत चुनाव ड्यूटी में संक्रमित हुए शिक्षक की मौत के बाद परिवार में रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। पत्नी अपने बच्चों को लेकर मायके चली गई है, जबकि भाई मेहनत-मजदूरी कर परिवार का खर्च बमुश्किल से चला पा रहा है। कारण कोरोना के कारण मजदूरी भी उसे नियमित नहीं मिल रही है।
परिवार का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना संक्रमण से जान गंवाने वाले कर्मचारियों के परिवार को 30 लाख मुआवजा देने की बात कही है। यदि ये मिल जाएंगे तो विधवा महिला और उसके बच्चों का गुजारा हो जाएगा।
8 साल पहले लगी थी नौकरी
सहजनवा के कुवाबार सिंघोरवा गांव अजय कुमार चौधरी साल 2013 में सहायक अध्यापक के पद पर चयनित हुए थे। वे ब्रम्हपुर ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय भैरही में तैनात थे। इसके बाद उन्होंने पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखी थी। पूरा परिवार काफी खुश था। लेकिन कोरोनाकाल में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में उनकी ड्यूटी लगी। उरूआ ब्लाक में 15 अप्रैल को मतदान संपन्न कराया। इसके तीन बाद 18 अप्रैल को उनकी तबीयत खराब हो गई। जांच में वह कोरोना पॉजीटिव निकले।
30 अप्रैल को हुई थी मौत
इसके बाद अजय होम आइसोलेशन में चले गए। लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। 29 अप्रैल को उनका आक्सीजन लेवल घटने लगा। परिजन किसी तरह उन्हें बीआरडी मेडिकल कॉलेज के कोविड अस्पताल में ले गए। लेकिन 30 अप्रैल की रात इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया।
मायके में रहने को मजबूर हुई पत्नी व बेटी
उनकी मौत के बाद पूरा परिवार टूट गया। पत्नी सुनंदा चौधरी व उनकी चार वर्षीय बेटी अब मायके में रहने को मजबूर हो गईं। वहीं, अजय के बड़े भाई अखिलेश उनकी पत्नी व तीन बच्चे और एक विधवा भाभी गांव के घर पर हैं। अजय के भाई अखिलेश ने बताया उनके बड़े भाई की पांच वर्ष पहले ही मौत हो गई थी। अखिलेश के पास भी आए के लिए सिर्फ मजदूरी ही एक सहारा है। लेकिन कोरोना की वजह से वह भी नसीब नहीं हो रही। ऐसे में पूरे परिवार की जिम्मेदारी अजय पर ही थी।
अब खाने तक के संकट
उनकी मौत के बाद परिवार पर ऐसा दुखों का पहाड़ टूटा कि परिवार पर आर्थिक संकट छा गया है। अब किसी को आगे कुछ दिखाई ही नहीं नहीं दे रहा। उन्होंने बताया अजय की मौत के बाद परिवार के सामने खाने तक का संकट खड़ा होता जा रहा है। अब तक तो किसी तरह काम चल गया, लेकिन अब आगे क्या होगा, कुछ समझ में नहीं आता। अजय के ही कंधों पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी।