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वाराणसी में ब्लैक फंगस का कहर, BHU में 39 मरीजों का हुआ ऑपरेशन

वाराणसी। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल खासकर वाराणसी में ब्लैक फंगस का प्रसार तेजी से हो रहा है। बुधवार की रात तक BHU के सर सुंदरलाल अस्पताल में इस बीमारी से पीड़ित 97 मरीज आ चुके हैं। इनमें से 15 की मौत हो गई है, जबकि 82 का इलाज चल रहा है। अब तक 39 मरीजों का ऑपरेशन किया जा चुका है। इनमें से 14 मरीजों की आंख पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसे डॉ. राजेन्द्र प्रकाश मौर्य और उनकी टीम ने आर्बिटल एक्जेन्टेरशन करके निकाल दिया।

लेकिन क्या आंख निकालना ही आखिरी विकल्प था? इस पर BHU के एसोसिएट प्रोफेसर और नेत्र कैंसर व आकुलोप्लास्टी यूनिट के इंचार्ज डॉक्टर राजेंद्र प्रकाश मौर्य ने अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, आर्बिटल एक्जेन्टेरशन जीवन रक्षक शल्यक्रिया है। इसके द्वारा संक्रमण को ब्रेन में फैलने से रोका जाता है।

सवाल: डॉ. साहब ब्लैक फंगस का उचित इलाज क्या है?

जवाब: ब्लैक फंगस का उचित व प्रभावी इलाज संभव है। मगर इलाज रोग की प्रारम्भिक अवस्था में ही शुरू किया जाना चाहिए। ब्लैक फंगस के इलाज के तीन तरीके हैं। पहला, क्षतिग्रस्त (मृत ऊतकों) भाग का शल्य क्रिया द्वारा डेब्राइडमेन्ट (क्षत शोधन)। दूसरा एंटीफंगल (फंफूदी नाशक) दवाओं का सेवन और तीसरा, रोग के कारक का पूर्ण नियंत्रण जैसे इन्सुलिन या ओरल हाइपोग्‍लासेमिक दवाओं द्वारा ब्लड शुगर का प्रभावी नियंत्रण।

सवाल: ब्लैक फंगस के रोगियों में कौन सी फफूदी नाशक दवाएं दी जाती हैं। आजकल दवाओं की बहुत किल्लत सुनने में आ रही है।

जवाब: जी हां, ब्लैक फंगस की कारगर एण्टी फंगल दवाओं की आवश्यकता के अनुसार दवाओं की कम आपूर्ति एक समस्या है। मगर सरकार व जिला प्रशासन लगातार आपूर्ति की व्यवस्था कर रही है। ब्लैक फंगस की सबसे सुरक्षित एण्टी फंगल दवा है- इंजेक्शन लाइपोसोमल एम्फोटेरेसिन-बी। इसे 5 मिलीग्राम प्रतिदिन 5 प्रतिशत डेक्स्ट्रोज में मिलाकर 2-3 घण्टे में दिया जाता है। यदि ब्लैक फंगस ब्रेन में पहुंच गया है तो मात्रा दुगुनी हो है। लाइपासोमल एम्फोटेरेसिन-बी नहीं उपलब्ध होने पर इन्जेक्शन एम्फोटेरेसिन-बी डी ऑक्‍सीकोलेट देते हैं। मगर इसके लिए ‘सिरम क्रिएटीनीन’ जांच कराना अनिवार्य है। यह गुर्दे को नुकसान पहुंचा सकता है। जिन रोगियों को एम्फोटेरेसिन बर्दाश्त नहीं होता उनके लिए पोसाकोनाजोल टेबलेट दिया जा सकता है। यदि उपर्युक्त कोई दवा नहीं उपलब्ध हो तो इट्राकोनाजोल टेबलेट दिया जा सकता है।

सवाल: सर्जरी करने की जरूरत कब होती है और क्या करते हैं?

जवाब: शल्यक्रिया की आवश्यकता फंगस के संक्रमण को बढ़ने से रोकने हेतु करते हैं। इसके लिए एग्रेसिव साइनस डेब्राइडमेन्ट करते हैं और नेत्रगुहा का आर्बिटल एक्जेन्ट्रेशन किया जाता है।

सवाल: आर्बिटल एक्जेन्ट्रेशन क्या होता है?

जवाब: आर्बिटल एक्जेन्ट्रेशन (नेत्र गुहा विच्‍छेदन) एक प्रकार की शल्यक्रिया है। इसे नेत्रगुहा के जानलेवा कैन्सर व ब्लैक फंगस के नेत्रगुहा में फैलने पर किया जाताहै। इसमें नेत्रगुहा के अन्दर के सभी भाग को काटकर निकाल दिया जाता है।

सवाल: आर्बिटल ऐक्जेन्ट्रेशन कैसे करते हैं?

जवाब: नेत्रगुहा विच्‍छेदन मुख्यत: 3 प्रकार का होता है। पहला, सब टोटल एक्जेन्ट्रेशन (आंशिक नेत्रगुहा विच्छेदन)। इसमें शल्यक्रिया द्वारा नेत्र गोलक के साथ आप्टिक नर्व, बाह्य मांसपेशिया, रक्तवाहिनियों एवं नेत्रगुहा की चर्बी को पूर्ण रूप से काटकर निकाल दिया जाता है। मगर रोगी की पलकों को सुरक्षित रखते हैं। दूसरा, टोटल एक्जेन्ट्रेरशन (पूर्ण नेत्रगुहा विच्छेदन)। यदि ब्लैक फंगस से पलकें भी क्षतिग्रस्त हो तो इसमें रोगी की पलकों को भी काटकर निकाल दिया जाता है। तीसरा, सुपर एक्जेन्टरेशन (बृहद नेत्रगुहा विच्छेदन)। इसमें शल्य क्रिया ब्लैक फंगस की एडवांस स्टेज में किया जाता है। जब ब्लैक फंगस के कारण चेहरे व मस्तिष्क का भाग क्षतिग्रस्त हो जाता है। इसमें नेत्रगुहा, चेहरे व कपाल की हड्डियों को भी काटकर निकाला जाता है। इसके लिए न्यूरोसर्जन, मैक्जीलो-फेसियल सर्जन की भी मदद लेनी पड़ती है।

सवाल: ब्लैक फंगस के रोगी में आर्बिटल एक्जेन्टेरशन (आंख निकालने) की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

जवाब: ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) एक जानलेवा तथा तेजी से फैलने वाला संक्रमण है। आर्बिटल एक्जेन्टेरशन जीवन रक्षक शल्यक्रिया है। इसके द्वारा संक्रमण को ब्रेन में फैलने से रोका जाता है।

सवाल: डॉ. साहब आर्बिटल एक्जेन्टेरशन व चेहरे की शल्यक्रिया के पश्चात होने वाली नेत्रगुहा की रिक्तता व चेहर की कुरूपता के लिए आप लोग क्या करते हैं?

जवाब: ब्लैक फंगस की एडवांस स्टेज में शल्यक्रिया के बाद आंख व चेहरे की क्रियात्मक व रचनात्मक विकृतियां उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति विकलांग हो जाता है, मानसिक रूप से तनाव में रहने लगता है। ऐसे रोगियों के रिहैबिलिटेशन हेतु हम लोग कुरूपता व रिक्त नेत्रगुहा को छुपाने के लिए कई प्रकार के कृत्रिम आर्बिटल प्रोस्थेसिस या आकुलोफेसियल प्रोस्थेसिस को लगा देते हैं। आजकल चश्मे में ही प्रोस्थेसिस फिट (स्पेक्अीकल माउन्ट प्रोस्थेसिस) का प्रचलन है।

सवाल: आप ब्लैक फंगस के रोगियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

जवाब: मैं ब्लैक फंगस के रोगियों से कहना चाहूंगा कि प्रारम्भिक चेतावनी वाले लक्षण को पहचाने। लक्षण मिलने पर तुरन्त नेत्र व नाक, कान, गले के सर्जन से सम्पर्क करें। सीटी स्कैन व एमआरआई अवश्य कराएं। ब्लैक फंगस का इलाज घर में कतई सम्भव नहीं है। अत: हॉस्पिटल में अवश्य भर्ती हों। यदि आपके सर्जन द्वारा सीटी स्कैन रिपोर्ट व बिमारी के गम्भीर लक्षण के आधार पर शल्यक्रिया द्वारा क्षतिग्रस्त आंख निकालने की राय दी जाए तो सर्जरी अवश्य कराएं। यह जान बचाने और रोग को फैलने से रोकेगा।

अब इंजेक्शन की हो रही किल्लत

वाराणसी में ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों के लिए अब जरूरी इंजेक्शन की भी किल्लत होने लगी है। BHU अस्पताल प्रशासन की ओर से 300 इंजेक्शन की मांग जिला स्वास्थ्य विभाग से की गई लेकिन गुरुवार की सुबह तक पूरी नहीं हो पाई। सीएमओ डॉ. वीबी सिंह के अनुसार उन्होंने 3,000 इंजेक्शन की मांग सरकार से की है। प्रयास किया जा रहा है कि BHU अस्पताल में भर्ती मरीजों को दिक्कत न होने पाए। इसीलिए वहां के डॉक्टर मरीजों के परिजनों को बाहर से दवा लाने के लिए भी नहीं लिख रहे हैं।

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