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तेजस्वी बाेले- प्रजातंत्र का गला घोंट रहे हैं आप, हमें अस्पताल और कोविड सेंटर जाने की दीजिए अनुमति

बलिया। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कोरोना के बीच सियासी चाल चल रहे हैं। वे पत्र के जरिए लगातार मुख्यमंत्री नीतीश पर निशाना साध रहे हैं। इस बार लेटर के जरिए उन्होंने मुख्यमंत्री पर प्रजातंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया है। साथ ही कहा है कि वे हिटलरशाही रवैया अपना रहे हैं। उन्होंने पत्र के जरिए ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर अनुमति मांगी है कि राज्य के सभी विधायकों सहित मुझे भी राज्य के किसी अस्पताल / पीएचसी / कोविड केयर सेंटर आदि के अन्दर जाकर मरीजों और उनके परिजनों से मिलने व राहत पहुंचाने, कोविड केयर सेंटर खोलने तथा सामुदायिक किचन चलाने की अनुमति प्रदान करें। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले कुछ वर्षों में जब-जब जनहित के मुद्दों को लेकर मैं सड़क पर निकला हूं, तब-तब मुझ पर महामारी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।

चार साल में एक भी पत्र का जवाब नहीं मिला

नेता प्रतिपक्ष ने इस बार नसीहत देते हुए पत्र लिखा है। पत्र के शुरू में ही उन्होंने लिखा है कि इस पत्र का मनवीय हित में आप अवश्य ही जवाब देंगे। पिछले चार वर्षों में आपने मेरे किसी पत्र का कोई जवाब नहीं दिया है। कई बार मैं अचंभित होता हूं कि गांधी, लोहिया, जेपी और कर्पूरी की विचारधारा पर चलने का दंभ भरने वाले मुख्यमंत्री इतने अलोकतांत्रिक कैसे हो सकते हैं कि नेता प्रतिपक्ष के पत्र का भी जवाब न दें।

सरकार की असंवेदनशीलता चरम पर

पत्र में तेजस्वी यादव ने कहा है कि राज्य में वैश्विक महामारी कोविड-19 के साथ-साथ उच्च स्तर पर स्वास्थ्य विभाग की अव्यवस्था, उदासीनता, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी, आवश्यक दवाओं एवं ऑक्सीजन आदि की कालाबाजारी तथा सरकार की असंवेदनशीलता भी चरम पर है। अब यह महामारी शहरी इलाके के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी भयावह रूप से फैल चुकी है।

स्पेशल टास्क फोर्स का गठन नहीं किया

उन्होंने कहा कि विधानसभा में आपने ही कहा था कि स्वास्थ्य व्यवस्था, कोविड मैनेजमेंट, पर्यवेक्षण में विधानमंडल के निर्वाचित प्रतिनिधि भी अपना योगदान दे सकते हैं। राज्यपाल द्वारा बुलायी गई सर्वदलीय बैठक में हमने 30 महत्वपूर्ण सुझाव रखे थे, जिसमें एक सुझाव में एक स्पेशल टास्क फोर्स का गठन कर Epidemiologist, Public health experts और तमाम राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधियों को सम्मिलित करने का प्रस्ताव था। लेकिन दुर्भाग्यवश आपकी सरकार ने इसका गठन नहीं किया। शायद इससे वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक हो जाते और संस्थागत भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाता।

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