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UP में दलित वोट बैंक पर SP की नजर, जाने क्यों पड़ी इसकी जरूरत ?

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए बेकरार समाजवादी पार्टी (SP) की नजरें अब दलित वोट बैंक पर टिक गई हैं। यह सभी जानते हैं कि यूपी में बिना जात पात की राजनीति के कोई भी चुनाव नहीं होता है। ऐसे में समाजवादी पार्टी भी अपने नए वोट बैंक तलाश रही है। यही वजह है कि एक तरफ सपा मुखिया मंदिरों के चक्कर लगा रहे हैं तो दूसरी तरफ अम्बेडकर जयंती पर दलित दीपावली और अम्बेडकर वाहिनी बनाने का एलान कर रही है।

आखिर क्यों जरूरत पड़ रही है नए वोट बैंक की

2017 चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन और 2019 में बसपा से गठबंधन करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ। साथ ही यूपी चुनाव में ओवैसी की पार्टी छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरने जा रही है। जानकारों की माने तो इससे सपा को ही नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही नहीं 2019 चुनावों में एक बार फिर साबित हो गया कि सभी पार्टियों का वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा छिटक कर भाजपा के साथ जा मिला है। उसमें दलित वर्ग भी है।

यही वजह है कि 2022 चुनावों में नुकसान को कम करने के उद्देश्य से समाजवादी पार्टी अब दलितों पर फोकस कर रही है। 2019 लोकसभा चुनावों में बसपा से गठबंधन करके वह जान गई है कि वोट बैंक को अपनी तरफ करने के लिए किसी गठबंधन की जरूरत नहीं है।

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?

सीनियर बृजेश शुक्ला कहते हैं, कि 2019 में दलित वोट बैंक का कुछ हिस्सा भाजपा के साथ जा चुका है। कुछ हिस्से पर बसपा सुप्रीमो मायावती की पकड़ बनी हुई है, लेकिन अभी भी एक हिस्सा ऐसा है जो कि दिशाहीन है। ऐसे में समाजवादी पार्टी उस हिस्से को अपने पाले में लाना चाहती है। अब समस्या यह है कि पूर्व में समाजवादी पार्टी की जो छवि रही है उसकी वजह से दलित वोट बैंक इनसे कभी जुड़ नहीं पाया। हालांकि अब समाजवादी पार्टी कोशिश में है कि यह वोट बैंक उनके साथ आ जाये तो चुनावों में उनको ताकत मिल जाएगी।

20 लोकसभा 96 विधानसभा सीटों पर है दलितों का असर

यूपी में सुरक्षित लोकसभा सीटों की संख्या 17 है जबकि 85 सुरक्षित विधानसभा सीट है। जानकर कहते हैं कि किसी भी सीट पर यदि 25% से 30% कोई वोटबैंक है तो वह निर्णायक ही होता है। इस तरह यूपी में 19 जिलों में दलित निर्णायक की भूमिका में हैं।

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