उत्तर प्रदेश प्रदेश लेटेस्ट न्यूज़

15 दिन में ओमप्रकाश की BJP के 3 बड़े नेताओं से मुलाकात

लखनऊ। साल 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा से अलग हुए पूर्व मंत्री ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जल्द ही एक बार फिर एनडीए का हिस्सा बन सकती है। इसकी स्क्रिप्ट भी लगभग लिखी जा चुकी है। मंगलवार को ओम प्रकाश राजभर की भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव के साथ हुई मीटिंग किसी भाजपा नेता से पहली मीटिंग नहीं है।

बीते 15 दिनों के भीतर ओम प्रकाश राजभर भाजपा के शीर्ष तीन नेताओं से भी मुलाकात कर चुके हैं। यह मीटिंग दिल्ली में हुई है। वहीं राजभर की भाजपा में एंट्री की कहानी लिखी गई है। अगर ऐसा हुआ तो भागीदारी मोर्चा से हाथ मिलाकर CM योगी को प्रदेश की कुर्सी से हटाने का ऐलान कर चुके असदुद्दीन ओवैसी के लिए यह बड़ा झटका होगा।

सूत्रों का कहना है कि ओम प्रकाश राजभर की भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से करीब दो हफ्ते पहले दिल्ली में मुलाकात हुई थी, उसके बाद राजभर ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इन दोनों मुलाकातों में राजभर ने बड़ी बेबाकी से अपनी बातें रखीं। खबर है कि टॉप लीडरशिप राजभर को एनडीए में शामिल करने के पक्ष में है।

हालांकि, राजभर से कहा गया कि वो लखनऊ यानी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ग्रीन सिग्नल लें आएं। स्वतंत्र देव सिंह से मुलाकात के बाद खुद राजभर ने भी इसके संकेत यह कहकर दिए कि राजनीति में किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

पूर्वांचल में है राजभर वोटबैंक का असर

2017 विधानसभा चुनावों के बाद हुए विश्लेषण में यह सामने आया था कि यूपी की लगभग 22 सीटों पर भाजपा की विजय में राजभर वोट बैंक बड़ा कारण था। जबकि पूर्वांचल के लगभग 25 से 28 जिलों में करीब 125 से ज्यादा सीटों पर राजभर वोट का असर है।

यूपी में राजभर वोट 3 प्रतिशत हैं। जबकि पूर्वांचल में यही वोटबैंक 16 से 18 प्रतिशत तक है। पूर्वांचल में वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, मऊ, जौनपुर, देवरिया जैसे जिलों में राजभर बहुतायत संख्या में है। राजभर यहां जीत हार भी तय करते हैं। यूपी की लगभग 65 विधानसभा सीटों पर लगभग 45 हजार से 80 हजार तक राजभर वोट हैं। जबकि 56 विधानसभा सीट पर 25 हजार से 45 हजार तक है।

राजभर की मजबूरी और भाजपा के लिए राजभर जरूरी

यूपी में ओम प्रकाश राजभर के भाजपा के साथ जाना मजबूरी है तो भाजपा के लिए भी राजभर वोट बैंक जरूरी है। इसीलिए, एक तरफ भाजपा राजभर पर डोरे डाल रही है तो राजभर भी यूपी में अपने लिए मजबूत साथी की तलाश कर रहे हैं।

भले ही राजभर ने भागीदारी मोर्चा बनाकर ओवैसी की पार्टी AIMIM के साथ गठबंधन कर लिया हो, लेकिन वो बखूबी जानते हैं कि इस भागीदारी मोर्चा के लिए सीटें जीतना कितना मुश्किल है। जिस पूर्वांचल में राजभर की पार्टी अपना प्रभाव रखती है। वहां ओवैसी कोई कमाल नहीं कर पाएंगे। इतना ही नहीं ओवैसी की वजह से कोई भी बड़ा दल राजभर की भागीदारी मोर्चा में शामिल नहीं होगा।

उधर, भाजपा को भी पूर्वांचल में अपनी जीत को दोहराने के लिए राजभर जैसे साथी की तलाश है। भाजपा के पास ओम प्रकाश राजभर के जैसा कोई इस जाति का बड़ा नेता नहीं है। पार्टी ने ओम प्रकाश राजभर के जाने बाद अनिल राजभर को राजभरों का नेता बनाने की कोशिश जरूर की, लेकिन सफलता मनमाफिक नहीं मिल पाई है।

इतना ही नहीं खबर है कि इंटरनल सर्वे में भाजपा की सीटें घटने की बात सामने आई है। ऐसे में भाजपा के लिए एक-एक सीट बेहद अहम हो जाती है। यही वजह है कि भाजपा अपना दल और निषाद पार्टी के साथ राजभर की पार्टी सुभासपा को भी जोड़ना चाहती है।

भाजपा ने राजभर की पार्टी का यूपी में पहचान दिलाई

​​साल 2002 में अस्तित्व में आई राजभर की पार्टी सुभासपा 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद चर्चा में आ गई। वजह थी भाजपा से गठबंधन। भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की वाराणसी से जीत सुनिश्चित करने के लिए सभी समुदायों को साधने की नीति के तहत अपना दल के साथ ही सुभासपा जैसे छोटे दल से भी चुनावी तालमेल किया।

2014 के लोकसभा चुनाव में अपने 13 उम्मीदवार भी मैदान में उतारे थे, लेकिन एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। लेकिन एकता मंच बनाने वाले ओम प्रकाश राजभर की सियासी गाड़ी चल पड़ी।

2012 के विधानसभा चुनाव में मुंह की खाने वाली पार्टी के 4 प्रत्याशी 2017 में विधानसभा पहुंच गए। ओम प्रकाश राजभर योगी आदित्यनाथ की सरकार में मंत्री बन गए। एनडीए के साथ समझौते में पार्टी को 8 सीटें मिली थीं, जिनमें से 4 पर उनकी जीत हुई और राजभर योगी सरकार में मंत्री बन गए।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

राजनीतिक विश्लेषक रुद्र प्रताप दुबे कहते हैं कि दरअसल सुभासपा और भाजपा दोनों को ही इस समय एक दूसरे की जरूरत है। भाजपा ने जिस तरीके से मेडिकल में आरक्षण दिया, राजा सुहेलदेव की वीरता को अपने बयानों में शामिल किया उस वजह से भी ओम प्रकाश राजभर दबाव में थे कि कहीं उनका कोर वोट बैंक ही उनसे दूर न हो जाए। भाजपा के साथ रहने पर कम से कम वो इस आशंका से दूर रहेंगे। इसलिए अभी के हालत में ओम प्रकाश राजभर और स्वतंत्र देव जी की मुलाकात को पुराने बयानों का पटाक्षेप और दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत के संदर्भ में ही देखना ज्यादा उचित होगा।

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *