वाराणसी। हम आजाद भारत के नागरिक हैं यह कहना बहुत आसान है कि इस देश में हर किसी को सर उठाकर मान सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, लेकिन यह बात कहां तक सच है। यह किसी से छुपा नहीं है, जी हां यही सच्चाई है, मैं बात कर रही हूं महिलाओं की अपने देश की मातृशक्ति की। यह सुनते ही कुछ लोगों के दिमाग में यह बात आ गई होगी कि अरे अब कितना आजादी चाहिए। धन दौलत में हिस्सेदारी दे दिया समाज, शिक्षा, रोजगार में हर जगह सबसे पहले महिलाओं को ही प्राथमिकता दी जाती है, फिर कितना आजादी चाहिए। आजकल की महिलाएं तो वैसे अपना जीवन जी रही है जैसे उनका दिल करता है, कौन रोकता— टोकता है, उन्हें कौन कहता है कि महिलाएं आजाद नहीं है, यह सभी आजादी और अधिकार किस काम का जब एक महिला सर उठाकर सम्मान के साथ समाज में चल नहीं सकती हर वक्त उसके अंतरात्मा को उसके रूह को यह डर सताता है कि कब और किसी भी वक्त एक वहशी दरिंदा उसके आबरू को निचोड़ खाएगा अपने हवस का शिकार बना लेगा गंदी मानसिकता वाले लोगों की घूरती हुई नजरें हर पल एक महिला को डर के साए में जीने के लिए विवश करता है। कुछ बुद्धिजीवी लोगों कहते हैं कि यह सब महिलाओं के खराब कपड़े के कारण हो रहा है, तो क्या उस पिता ने अपनी बच्ची को जन्म के समय बिना कपड़ों का नहीं देखा होगा जो आगे चलकर उसी बच्ची के साथ बलात्कार करता है।
खराब लोगों की सोच है कपड़े नहीं अगर कपड़े सच में ताल्लुक रखते तो शायद एक नन्हीं सी बच्ची के साथ बलात्कार नहीं होता क्योंकि उसको किसी ने तन ढकना नहीं सिखाया ना. आज हर एक परिवार डर के साए में जी रहा है जब वह घर से बाहर जाता है तो अपने बच्चों को देख कर के घर की महिलाओं को लेकर चिंतित रहता है हर एक महिला के ऊपर डर का साया है छोटी सी चूक और किसी के हाथों शिकार होना हवस के भूखे दरिंदे अपनी हवस बुझाने के लिए छोटी- छोटी- बच्चियों के साथ साथ 60 साल की बुजुर्ग महिला को भी अपने हवस का शिकार बनाते हैं और उनके अंतर आत्मा तक को निचोड़ खाते हैं कभी-कभी तो यह लगता है कि महिला होना सबसे बड़ा गुनाह है किस बात की आजादी जहां हर पल एक डर एक साया महिलाओं के पीछे लगा रहता है ऐसी स्थिति में यह कहना कहां गलत होगा कि हम चाहे लाख कहे कि हम एक उन्नत राष्ट्र के नागरिक है, लेकिन हमारे देश की महिलाएं की स्थिति दयनीय है वह आजाद नहीं एक प्रकार से कैद होती जा रही है कन्या भ्रूण हत्या चरम सीमा पर था सरकार ने लोगों ने पहल किया जागरूकता काम आई और कुछ हद तक कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगी लेकिन मुझे लगता है कि गर्भ में मार देना बच्चियों को सही है कम से कम किसी भेड़िया से तो बच जाएंगे जो अपने हवस बुझाने के लिए उन्हें नाना प्रकार की यातनाएं देता है अब तो भगवान से यही प्रार्थना है कि भगवान अगले जनम मोहे बिटिया न किजो।
पल्लवी वर्मा,सीमा चौधरी,कोमल, अर्चना,जानकी, सुरजा,पूजा,सपना, प्रीति,सोनाली, पिंकी इत्यादि महिलाएं शामिल रहीं।