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संक्रमण बढ़ने से हर्ड इम्युनिटी विकसित नहीं हो सकती, वैक्सीन ही अहम हथियार

वाराणसी। कोरोना का संक्रमण बढ़ने से हर्ड इम्युनिटी विकसित नहीं हो सकती है। इसके लिए वैक्सीन ही एक कारगर हथियार है। यह बात BHU के प्राणि विज्ञान विभाग के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और युवा वैज्ञानिक प्रज्जवल प्रताप सिंह द्वारा 75 वैज्ञानिकों की मदद से किए गए शोध में सामने आई है। इसके साथ ही एक सीरो सर्वे में भी यह महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया है कि कोरोना की पहली लहर में बनारस के सौ संक्रमितों में से तीन माह बाद महज सात लोगों में ही एंटीबॉडी बची।

अमेरिकी जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध

अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित BHU के वैज्ञानिकों के शोध पत्र के मुताबिक, पिछले साल नवंबर तक जिन लोगों में 40 फीसदी तक एंटीबॉडी थी, उनमें मार्च तक महज 4 फीसदी ही शेष रह गई। वहीं कोरोना की पहली लहर में बिना लक्षणों वाले मरीजों की संख्या बहुत अधिक थी। इसलिए उनमें एंटीबॉडी नाममात्र की बनी। इस वजह से यह लोग कोरोना की दूसरी लहर की चपेट से नहीं बच पाए। पहली लहर में संक्रमण रहित लोग कोरोना वायरस का सबसे आसानी से निशाना बने और मौत भी उन्हीं की सबसे अधिक हुईं।

प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि देश में वैज्ञानिकों ने आकलन किया था कि जून, 2021 तक शरीर में एंटीबाॅडी रहेगी, तो दूसरी लहर अगस्त तक आ सकती है। तब तक बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन का काम भी पूरा कर लिया जाता। हालांकि, यह आकलन गलत रहा और उससे पहले ही कोराेना की दूसरी लहर ने देश मे विस्फोटक स्थिति पैदा कर दी।

छह माह से अधिक नहीं रह सकती एंटीबॉडी

मेडिकल साइंस कहता है कि मानव शरीर में कोई भी एंटीबॉडी छह माह से अधिक समय तक नहीं रह सकती है। लेकिन, तीन माह में ही एंटीबॉडी खत्म हो जाएगी, ऐसा भी किसी ने नहीं सोचा था। हालांकि एंटीबॉडी खत्म होना कोई खतरे की बात नहीं है। क्योंकि एक बार संक्रमित हुए लोगों की इम्युनिटी में मेमाेरी बी सेल का निर्माण हो गया है। यह सेल नए संक्रमण की पहचान कर व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय कर देता है। इसलिए जो पिछली बार संक्रमित हुए थे, वे इस लहर में आसानी से ठीक भी हो गए, लेकिन जो संक्रमित नहीं हुए थे उन्हीं में मृत्यु दर सबसे ज्यादा देखी जा रही है।

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