पटना। कोरोना संक्रमण में इंसानों के साथ मछलियों के लिए भी ऑक्सीजन संकट गहरा गया है। बिहार में करीब 2,250 करोड़ मछलियों के जीरा (स्पॉन फ्राइ फिंगर लिंग) को ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से हैचरी से ट्रांजिट करने में दिक्कत आ रही है। वहीं मछली कारोबार भी 50% घट गया है। इससे मछुआरों को रोज 20 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।
बिहार में 150 हैचरी हैं और हर हैचरी में 15 से 20 करोड़ जीरा हैं। यहां से मछलियों के जीरा को ट्रांजिट कर तालाबों तक ले जाया जाता है। इसके लिए हैचरी में 450 बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर भी हैं, लेकिन कोरोना संकट के समय में सब खाली पड़े हैं। कॉफेड ने ऑक्सीजन की कमी को मछली उत्पादन के लिए बड़ा संकट बताया है।
मछलियों के लिए ऑक्सीजन जरूरी
मत्स्य बीज 3 तरह के होते हैं। इनमें सबसे छोटा स्पॉन होता है और वह 14 दिन बाद फ्राई हो जाता है और फिर एक महीने बाद फिंगर लिंग हो जाता है। मछली उत्पादन में स्पॉन का ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसके बाद फ्राई और फिंगर लिंग के लिए खर्च बढ़ जाता है।
हैचरीज में ऑक्सीजन संकट
बिहार में 14 ऑक्सीजन प्लांट हैं। हैचरी के खाली सिलेंडर यहां रीफिल हो जाते थे। लेकिन कोरोना संक्रमण में ऑक्सीजन संकट बढ़ा तो सरकार ने मेडिकल सेक्टर को छोड़ बाकी सेक्टर के लिए रीफिलिंग बंद कर दी। ऐसे में हैचरीज के ऑक्सीजन सिलेंडर रीफिल नहीं हो पा रहे हैं।
बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप का कहना है कि मत्स्य बीज स्पॉन हैचरी से निकलता है। इसे तालाबों तक ले जाने के लिए प्लास्टिक का एयर बैग आता है और उसमें स्पॉन को पानी के साथ डालकर ऑक्सीजन डाली जाती है। इसके बाद ही हैचरी से इसे कैरी कर तालाबों तक ले जाया जाता है।
7.5 लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य
प्रदेश में पिछले वित्त वर्ष (2020-21) में मछली उत्पादन के लक्ष्य 8 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 6.14 लाख मीट्रिक टन प्रोडक्शन हुआ था। इस वित्त वर्ष (2021-22) में 7.5 लाख मीट्रिक टन का टार्गेट है। लेकिन 50% भी पूरा होने के आसार नहीं दिख रहे। क्योंकि डेढ़ महीना बीत चुका है और अभी उत्पादन शुरू भी नहीं हुआ है और अगले कुछ महीनों में भी शुरू होने की उम्मीद नजर नहीं आ रही।
मत्स्यजीवी सहकारी संघ लिमिटेड के एमडी ऋषिकेश कश्यप का कहना है कि न तो ऑक्सीजन प्लांट की व्यवस्था है और न ही ऑक्सीजन सिलेंडर मिल पा रहे हैं। ऐसे में मछली उत्पादन में कमी आने से बिहार को बंगाल और दूसरे राज्यों को पैसा देना होगा। बिहार में कतला, रेहू, नैनी, ग्रास, सिल्वर और कॉमन की डिमांड रहती है, लेकिन उत्पादन प्रभावित होने से इन प्रजातियों की मछली खाने के शौकीन लोगों को अब दिक्कत होगी।
कारोबार 50% घटा, बेरोजगारी बढ़ी
कोरोना काल में राज्य में मछली के कारोबार में 50% से भी ज्यादा की गिरावट आई है। मत्स्यजीवी सहकारी संघ का कहना है कि 10 लाख से ज्यादा मछुआरे बेरोजगार हो गए हैं। राज्य में मछली कारोबार से जुड़े लोगों की संख्या करीब 40 लाख है और सालाना 8 लाख मीट्रिक टन मछली की खपत होती है। सामान्य तौर पर राज्य में हर रोज औसतन 40 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार होता था। लेकिन अब 20 करोड़ से भी कम की मछलियां बिक रही हैं।