लखनऊ। यूपी में सियासी हलचल के बीच भाजपा का ‘ऑपरेशन उत्तर प्रदेश’ शुरू हो गया है। पिछले 15 दिन से यूपी सरकार से लेकर संगठन में फेरबदल की चर्चाओं के बीच भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह सोमवार को लखनऊ पहुंचे। संभावना है कि यूपी में भाजपा के संगठन और सरकार में ‘बड़े’ बदलाव हो सकते हैं। यह भी तय होगा कि यूपी भाजपा 2022 का चुनाव किन चेहरों के नेतृत्व में लड़ेगी।
बीएल संतोष ने पहले दिन प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, संगठन महामंत्री सुनील बंसल के साथ 6 क्षेत्रों के अध्यक्ष व प्रदेश महामंत्री के साथ बैठक की। जिसमें संगठन की गतिविधियों और कार्यक्रमों की रिपोर्ट उनके सामने रखी गई। योगी सरकार बनने के बाद पहली बार 7 मंत्रियों से अलग-अलग मुलाकात की है।
मंगलवार को पहले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य फिर डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा से मिलेंगे। सूत्रों का कहना है कि बीएल संतोष पूरी तैयारी के साथ यूपी दौरे पर आए हैं। उप्र के राजनीतिक हालातों का अध्ययन करने के साथ खास नेताओं से बात की जा रही है। कई प्रमुख नेताओं से 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले उठाए जाने वाले कदमों पर सुझाव मांगे गए हैं।
चिंता, दिल्ली और बंगाल की तरह दो ध्रुवों में बंट सकते हैं मतदाता
यूपी चुनाव में वोटर्स दिल्ली और बंगाल की तरह दो पार्टियों के ध्रुवों में बंट सकते हैं। बदलाव की संभावनाओं के पीछे भाजपा की रणनीति है कि 2022 में एक बार फिर भाजपा का वोट बैंक चुनौती देने वाले दल से ज्यादा हो। पार्टी सूत्रों का कहना है कि सरकार और संगठन में यदि कोई बदलाव होना है तो जल्द होगा। वैसे भी जिन राज्यों में चुनाव होता है तो पार्टी वहां 6 माह पहले तैयारी शुरू कर देती है। यूपी के विधानसभा चुनाव में तो ज्यादा वक्त ही नहीं बचा है।
आगे क्या? पार्टी योगी के चेहरे पर चुनाव लड़ने को खतरा मान रही है
पार्टी योगी के चेहरे पर चुनाव लड़ने को खतरा मान रही है। इसमें यक्ष प्रश्न है कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए या फिर सरकार में उनका कद बढ़ाए। मंत्रिमंडल से डिप्टी सीएम पद समाप्त होने की भी संभावना है। 4-5 नए मंत्री बन सकते हैं। महत्वपूर्ण विभागों में परंपरा से हट कर परिवर्तन हो सकता है। जिसमें कार्मिक और गृह जैसे विभाग शामिल हैं। सतीश द्ववेदी सहित कुछ मंत्रियों के इस्तीफे भी हो सकते हैं।
क्यों जरूरी है बदलाव
भाजपा सरकार में सवर्णों का दबदबा है। पंचायत चुनाव भाजपा के लिए ‘अलार्मिंग’ रहे। कोरोना प्रकोप के दौरान राज्य सरकार से जनता की नाराजगी बढ़ी है। सामाजिक तानेबाने में नई गोलबंदी दिखी। जबकि 2017 में भाजपा की चमत्कारिक जीत के पीछे पिछड़े, अति पिछड़ों व अति दलितों से संभव हुई थी। 2022 के चुनाव के पहले भाजपा इसे दुरुस्त करना चाहती है। क्योंकि भाजपा को पिछड़ों-दलितों में पैठ रखने वाले दल सपा-बसपा से चुनौती मिलेगी।
पंचायत चुनाव में सपा को मिली कामयाबी भाजपा के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है। डिप्टी सीएम मौर्य को छोड़ भाजपा सरकार के सामान्य जातियों के मंत्री ज्यादा प्रभावशाली माने जाते हैं। जबकि पिछड़ी व दलित जाति के मंत्रियों के प्रभाव को कम आंका जाता है।