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चुन्नू तो जिंदा निकला, सिस्टम की हुई मौत

पटना। मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (PMCH) ने एक नहीं पांच-पांच गलतियां की है, जिससे जिंदा मरीज के नाम का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हो गया। जब इस पूरे मामले की पड़ताल की तो पांच ऐसी गलतियां सामने आईं जो इस घटना का कारण बनी हैं। इसमें रजिस्ट्रेशन से लेकर डेड बॉडी निकलने तक कई स्टेप में होने वाली गलतियां शामिल हैं। प्रशासन अपनी साख बचाने के चक्कर में गलती पर गलती करता गया।

गलती एक : इलाज के दौरान रात से ही गलत अपडेट

चुन्नू कुमार की सेहत में सुधार था। डॉक्टर भी परिजनों से ऐसा ही बोल रहे थे। इसके बाद भी सुबह अचानक से चुन्नू की हालत गंभीर होने के बाद वेंटिलेटर पर जाने की खबर परिजनों को दी गई। परिजनों ने रात के अपडेट का हवाला दिया। इसके बाद भी कोविड वार्ड में तैनात कर्मचारियों ने ध्यान नहीं दिया। परिजनों की बात को अनसुना किया गया। अगर कोविड वार्ड के कर्मचारी बात मान लेते तो ऐसा नहीं होता। सुबह में ही मरीजों का अंतर खत्म हो जाता।

लती दो: अचानक से मरीज इतना गंभीर कैसे हो गया?

PMCH के कोविड वार्ड में तैनात डॉक्टरों के सामने हर संक्रमित मरीज की BST होती है। इसमें हर एक घंटे का फॉलोअप होता है। कब कौन सी दवा चली और इससे मरीज की सेहत पर क्या असर पड़ा इसकी पूरी जानकारी ड्यूटी के डॉक्टरों को रहती है। इसके बाद भी अचानक से जब सेहत बिगड़ने की बात आई तो यह पड़ताल नहीं की गई कि क्यों हालत बिगड़ी है।

गलती तीन: वार्ड ब्वाय पर डॉक्टरों को भरोसा

डॉक्टर मरीजों पर ध्यान देने के बजाय हेल्थ वर्करों पर आंख बंद करके भरोसा करते रहे। इसी भरोसे में ही हेल्थ वर्करों ने जो कहा उसी पर भरोसा कर वहीं किया जो वह बोलते गए। अगर डॉक्टरों ने खुद सेहत की पड़ताल की होती तो शायद इतना बड़ा मामला नहीं होता।

गलती चार: बिना मरीज के बारे में जाने तैयार हो गया प्रमाण-पत्र

PMCH के कोविड वार्ड में बिना मरीज के बारे में जाने ही डॉक्टर ने उसके मरने की घोषणा कर दी। कर्मचारियों ने डॉक्टर को जो भी बताया डॉक्टर उस पर आंख बंदकर भरोसा करते गए। इस कारण से ही डॉक्टरों से बड़ी गलती हुई। मरीज के बेड के पास जाकर पड़ताल कर लिए होते तो डॉक्टरों से यह बड़ी चूक नहीं होती। अगर PPE किट में बुलाकर किसी एक परिजन को मृतक का चेहरा दूर से दिखा दिया गया होता तो भी यह मामला नहीं होता।

गलती पांच: डेड बॉडी कैरिंग सर्टिफिकेट भी हो गया जारी

कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार के लिए बाहर ले जाने के लिए डेड बॉडी कैरिंग सर्टिफिकेट जारी होता है। यह सर्टिफिकेट ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर मरीज का परीक्षण करके जारी करता है, लेकिन इस मामले में मरीज के पास डॉक्टर गए ही नहीं कार्यालय से ही मरीज की मौत की घोषणा करने के साथ कैरिंग सर्टिफिकेट तक जारी कर दिया। इस सर्टिफिकेट को हेल्थ मैनेजर को दिया गया। इसके बाद हेल्थ मैनेजर ने शव के अंतिम संस्कार के लिए एम्बुलेंस के साथ अन्य व्यवस्था कर दी।

बिहार के सबसे बड़े हॉस्पिटल पर लग गया दाग

PMCH का देश में बड़ा नाम है। इस संस्थान के साथ CM नीतीश कुमार की भी यादें जुड़ी हैं। यही कारण है कि नीतीश कुमार इस अस्पताल को वर्ल्ड क्लास का बनाने का सपना संजोए बैठे हैं। लेकिन यहां की व्यवस्था आए दिन साख पर दाग लगाती है। कोरोना काल में रविवार को जो घटना हुई है, उसमें कोरोना संक्रमित चुन्नू काे जीते जी मारकर सिस्टम खुद मर गया है। PMCH के इतिहास में यह घटना बड़ा दाग बन गई है। बिहार के लाखों मरीज जो PMCH पर आंख बंद कर भरोसा करते हैं उनके लिए यह लापरवाही उनके लिए बड़ी चोट होगी।

चुन्नू के परिवार वालों को भी PMCH पर था भरोसा

बाढ़ के रहने वाले चुन्नू के परिजनों को भी PMCH पर पहले बड़ा भराेसा था। जब चुन्नू को दो दिन पहले बाढ़ से पटना मेडिकल कॉलेज इलाज के लिए लाया गया तो उन्हें लगा था कि ब्रेन हैमरेज है तो क्या वह इतने बड़े अस्पताल से पूरी तरह से ठीक होकर घर जाएंगे। लेकिन पहले तो तब भरोसा टूटा जब जांच में कोविड पॉजिटिव आए गए। फिर भी परिजनों ने इलाज के लिए चुन्नू को भर्ती करा दिया और वह खुद बाहर रहते थे।

जान लीजिए क्या है? कोविड वार्ड में व्यवस्था

कोरोना वार्ड में संक्रमित पहुंचता है तो पहले डॉक्टर वहां एडमिट करने से पहले उससे बात करते हैं। कोरोना संक्रमण और उसकी हालत के साथ पूरी हिस्ट्री पूछ लेते हैं। कोरोना के साथ उसे और क्या बीमारी है इसकी पूरी जानकारी लेने के बाद डॉक्टर तय करते हैं कि संबंधित मरीज को कहां रखना है। ऑक्सीजन वाला बेड देना है या फिर ICU में रखना है यह सब डॉक्टर ही तय करता है। इसके बाद ही मरीजों को कोडिंग होती है।

मौत के बाद यह है प्रक्रिया

अगर संक्रमित मरीज की मौत हो जाती है तो उसकी BST पर डॉक्टर ही मौत की पुष्टि कर लिखता है। इसके बाद वहां तैनात हेल्थ मैनेजर और जवाबदेह डॉक्टर यह तय करते हैं कि मरीज को परिजनों का बताकर शव का अंतिम संस्कार करा दिया जाता है।

वार्ड के बाहर PPE किट पहना कर परिजन को दिखाया जाता है मुंह

अगर किसी संक्रमित की मौत हो जाती है तो परिजनों को वार्ड के बाहर ले जाने के दौरान ही PPE किट पहनाकर उन्हें मुंह दिखा दिया जाता है। घाट पर जाने या शव को परिजनों को सौंपने का कोई नियम नहीं है। PMCH में कोरोना वार्ड के बाहर चन्नू के परिजनों के साथ ऐसा नहीं किया गया इस कारण से बवाल मचा। अगर वार्ड के बाहर ही शव दिखा दिया गया होता है तो ऐसा नहीं होता। अन्य मौत पर ऐसा ही होता है। वार्ड में मौत के बाद दिखाया जाता है, जिसके बाद परिजन मोबाइल में फोटो खींच लेते हैं।

PMCH की इस बड़ी गलती से भी लगा बड़ा दाग

PMCH में जब कोविड चरम पर था तब DM के आदेश पर 50 वार्ड ब्वाय को रखा गया था। कांटेक्ट पर रखे गए 50 वार्ड ब्वाय में 3 से 4 महिलाएं भी थीं। कोरोना काल में इन्हीं 50 वार्ड ब्वाय ने पटना मेडिकल कॉलेज की लाज बचाई थी, लेकिन जनवरी में जब मामले कम होने लगे तो उन्हें बाहर कर दिया गया। वार्ड ब्वाय का आरोप है कि आज तक उन्हें पैसा भी नहीं दिया गया। जब दोबारा कोरोना की लहर आई तो PMCH प्रशासन ने उन ट्रेंड वार्ड ब्वाय को बुलाने के बजाए नए लोगों को काम पर लगा दिया, जिन्हें कोरोना में काम करने का कोई अनुभव नहीं था। अंट्रेड लोगों को लगाने के साथ कोरोना का बेड भी बढ़ा दिया गया। एक साथ 100 बेड हुए और मरीजों की संख्या बढ़ गई, जिसके बाद पूरी व्यवस्था गड़बड़ा गई। अब पूरी गलती एक व्यक्ति पर डालकर पटना मेडिकल कॉलेज प्रशासन अपनी इज्जत बचाने में जुटा है।

पटना मेडिकल कॉलेज की गलती से शव की हुई दुर्गति

PMCH की गलती से पूर्णिया के रहने वाले 45 साल के राज कुमार भगत के शव की दुर्गति हुई। उनका शव प्लास्टिक के थैले में पैक कर अंतिम संस्कार के लिए बांस घाट भेज दिया गया है। परिजन भी वहां पहुंच गए। गांव से पत्नी और बच्चे के साथ परिवार के अन्य सदस्य भी रोते बिलखते पहुंच गए। लेकिन, अंतिम संस्कार के पहले जब मुंह देखा तो हर कोई दंग रह गया। चिता पर शव छोड़ कर चुन्नू के परिजन PMCH भाग आए। फिर हंगामा हुआ और चुन्नू के जिंदा होने की कहानी सामने आई। इसके बाद राज कुमार भगत का शव चिता से वापस PMCH मंगाया गया और इसमें शव की काफी दुर्गति हुई। शव को लाने के बाद पहचान कराई गई फिर उसके परिजनों को फोन किया गया।

PMCH की तरह परिवार ने की होती गलती तो क्या होता?

गनीमत यह रहा कि PMCH के डॉक्टरों और हेल्थ वर्करों की तरह चुन्नू के परिवार वालों ने गलती नहीं की। वह प्लास्टिक में बंद शव का अंतिम संस्कार करा देते तो फिर बड़ी कहानी हो जाती। फिर तो राज कुमार भगत का पता लगाना मुश्किल हो जाता और कुछ दिन बाद जब चुन्नू घर पहुंचता तो भी बड़ा मामला होता। लेकिन दूर से परिवार वालों ने मुंह देखा और फिर राजकुमार भगत का शव जलने से बच गया।

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