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दुर्लभ चिड़ियों के पकड़ने, मारने और अवैध व्यापार पर कब लगेगी रोक? – गोपाल

वाराणसी। वाराणसी समेत देश के अन्य इलाकों में आहार के लिए लालसर, सुरखाब, चाहा, तीतर, बटेर, हरियल,बघेरी, जलमुर्गी,बोदर, दाहुक,बगुला, वनमुर्गी,किंगफिशर,बुलबुल, कोयल,नीलकंठ, पढ़ोकी,फाखता,मैना,गौरैया और इसके जैसे सारे छोटे पंछी सहित कई दुर्लभ चिड़ियों के हो रहे शिकार से इसका संरक्षण सवालों के घेरे में है। वन प्राणी संरक्षण अधिनियम को ठेंगा दिखाते हुए विलुप्त चिड़ियों को मारना, बेचना और खरीदना जारी है।जबकि यह दंडनीय अपराध है। तो आइए आज हम बात करते हैं इंसानों का आहार बनती चिड़ियों को लेकर। बाजार में मांस के तौर पर मुर्गा उपलब्ध होते हुए भी चिड़ियों के मांस के शौकीन लोगों के लिए विलुप्त होती चिड़ियां लगातार शिकार हो रही है। चिड़ियों के मांस खाने वालों में में कई नन्ही सी चिड़ियों को विलुप्त के पास पहुंचा दिया है। बहेलिये चिड़ियों को पकड़ते हैं और उसे बेच देते हैं। बगेरी चिड़िया के नाम पर नन्हीं गौरैया को भी मार कर उसका मांस बेचा जाता है। खासकर हाईवे पर बने ढाबों में यह देखा जाता है और शौकीनों के घरों में भी इसकी आपूर्ति की जाती है।

वाराणसी के बहेलिया टोला,गोलगड्डा क्षेत्र में शिकारियों को देखा जा सकता है।वाराणसी के अन्य मार्केट और क्षेत्रों में चिड़ियों को खरीदना एवं बेचना देखा जा सकता है।देखा जाए तो पशु पक्षियों को संरक्षण,सुरक्षा, अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 को लागू किया गया था।जनवरी 2002 में अधिनियम में संशोधन किया गया और अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जुर्माने और सजा को अधिक कठोर बना दिया गया है। कड़ी कानून के बावजूद धड़ल्ले से वन्यजीवों के शिकार की खबरें आती रहती हैं। खासकर वैसे पक्षी जो विलुप्त होने वाले हैं या दुर्लभ है,उनका मांस के लिए शिकार हो रहा है। मांस के लिए चिड़ियों का शिकार केवल पैसे वाले शौकीन लोगों तक ही सीमित नहीं है बल्कि गरीब और आहार के लिए खानाबदोश जनजाति देश भर में शिकार करते रहते हैं ।पढ़े-लिखे चौक से चिड़ियों का मांस खाने वाले लोग टेस्ट बदलने के लिए जहां आहार बनाते हैं वही खानाबदोश जनजाति भोजन की कमी और अज्ञानता में यह कदम उठाते हैं। खानाबदोश जनजातियों का मुख्य आहार पशु पक्षियों का शिकार है। चाहे पक्षी कोई भी हो प्रजाति बचे या विलुप्त हो जाए इन्हें फर्क नहीं पड़ता।

किंगफिशर,पंडुक,वनमुर्गी,मैना, बुलबुल, कोयल, नीलकंठ,बगुला, जलमुर्गी आदि कोई भी पक्षी इनसे दया की उम्मीद नहीं रख सकता है।खानाबदोश जनजातियों के लोग जो पछी देखते हैं वह उन्हें छरी और गुलेल से मारते हैं, पतले बास के खंभे में तय किए गए डार्ट प्रकार के भाले, पक्षियों को खेदने के लिए पेड़ों की ऊपरी शाखाओं तक पहुंचने के लिए कुछ और डंडे भी जोड़ते हैं। इससे पेड़ों पर कूदती गिलहरी का भी ये बड़े ही सफाई से शिकार कर लेते हैं। शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में बेच रहे कुछ लोगों को जब वीवंडर फाउंडेशन के कुछ सदस्यों ने कानूनी कार्रवाई का डर दिखाया तो सभी बहेलिये चिड़ियों को छोड़ घटनास्थल से फरार हो गए। चौंकाने वाली बात यह रही कि घटनास्थल से बिल्कुल समीप पुलिस थाना होने के बावजूद यह सभी बहेलिया इस कुकृत्य को अंजाम दे रहे थे और पुलिस प्रशासन बिल्कुल बेसुधऔर निष्क्रिय थी मानो उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है। दुर्लभ पक्षियों के संरक्षण के सारी कवायदे कोई मायने रखती नहीं दिखती हैं।

चिड़िया खाने के शौकीन की मांग पर देश के कई शहरों में धड़ल्ले से लालसर,बघेरी, तीतर,बटेर, हरियल सुरखाव आदि संरक्षित पक्षियों की बिक्री की खबर मीडिया में आती रहती है।पक्षियों के तस्कर शिकार कर इन दुर्लभ पक्षियों की तस्करी कर रहे हैं और शौकीन लोगों से इनके मांस की मुंहमांगी कीमत वसूल रहे हैं। प्रतिबंध के बावजूद पक्षियों की खरीद-फरोख्त का कारोबार उत्तर प्रदेश के वाराणसी चंदौली सहित कई शहरों में चल रहा है। समय-समय पर वन्यजीवों की तस्करी की खबरें आती रहती हैं। वाराणसी के विभिन्न बेटलैंड वाले क्षेत्र हैं जहां शिकारी या बहेलियों का ग्रुप है जो पक्षियों को मारता, पकड़ता और ब्रीडिंग करवाता है साथ ही दूसरों जगहों पर भेजता है।इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि इंफोर्समेंट एजेंसी जैसे पुलिस या वन विभाग में संवेदनशीलता की कमी दिखती है।

चिड़ियों को बेचने या पकड़ने के दौरान बहेलियेको गरीब आदमी का हवाला देकर छोड़ दिया जाता है। मामला अदालत में भी जब जाता है तो गरीबी की वजह से कम सजा या फिर चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता है ।कोई कठोर कार्यवाही ना होने के लिए दोबारा उसी काम में वह लोग में यह लोग लग जाते हैं। अगर वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत कुछ ना कुछ सजा दी जाए तो इसमें काफी कमी आएगी ।सच भी है ,वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत विरुद्ध चिड़ियों का बेचना और खरीदना दंडनीय अपराध है। बगेरी के नाम पर गौरैया और अन्य दुर्लभ पक्षियों का शिकार एक गंभीर सवाल है। ऐसे लोगों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जरूरत है।इसमें जनभागीदारी अहम है ताकि बहेलियों पर नजर रखी जा सके। मैं गोपाल कुमार अध्यक्ष (वीवंडर फाउंडेशन ) जो भी पिछले 3 साल से गौरैया संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे हैं और आप सभी जनमानस से अपील करता हूं कि आइए इस गौरैया बचाओ अभियान में हम सभी का साथ दें और विलुप्त हो रही पक्षियों के अवैध कारोबार पर रोक रोक लगाई जा सके।

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