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29 हजार शौचालय का मलजल गिरता है नदी में, वाराणसी का अधूरा ड्रेनेज सिस्टम जिम्मेदार

वाराणसी। जिले में वरुणा नदी का पानी मौजूदा समय में स्नान योग्य नहीं है। वाराणसी को उत्तर और दक्षिण में बांटने वाली गंगा की सहायक नदी वरुणा की सेहत दिनोंदिन बेहद खराब होती चली जा रही है। वर्तमान में नदी का BOD (Biological Oxygen Demand) यानी पानी में ऑक्सीजन की मांग 7.2 पर पहुंच गई है, जबकि सामान्य तौर पर नदी में यह मात्रा 3 के आसपास ही होनी चाहिए। हालांकि नदी के पानी का PH मान 7.65 और डीओ की मात्रा 5.2 सामान्य है। मगर बीओडी औसत से ढाई गुना अधिक है, जिससे नदी के सामान्य जीवों की ऑक्सीजन की कमी से मौतें हो सकती हैं।

इससे वरुणा नदी का जलीय जीवन या नदी का पूरा इकोसिस्टम ही ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब वरुणा नदी में स्नान करना बीमारियों को जन्म देने जैसा है। इस तरह से वरुणा के जल में प्रदूषकों की मात्रा बढ़ जाने से गंगा का पानी भी दूषित हो रहा है।

60 MLD दूषित जल बिना शोधन के गिरता है वरुणा में

वरुणा की इस दयनीय हालात के पीछे शहर का अधूरा ड्रेनेज सिस्टम जिम्मेदार है। आज भी वरुणा में शहर के 5 नाले सीधे बिना ट्रीटमेंट किए ही मिलते हैं। सीवेज ट्रीटमेंट के लिए एक प्लांट गोइठहां में बना है और उसकी क्षमता 120 MLD (मिलियन लीटर पर डे) है। मगर उसकी क्षमता से भी कई गुना कम 35 MLD ही दूषित जल पहुंच पाता है। वहीं 60 एमएलडी सीवेज का दूषित जल रोजाना सीधे वरुणा में गिर जाता है। इसमें 29 हजार शौचालयों का मलजल भी शामिल है, जिसका कनेक्शन आज तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से नहीं हो सका। जबकि सीवेज ट्रीटमेंट के लिए 52 हजार से ज्यादा शैचालयों का कनेक्शन वरुणा पार इलाके में करना था, मगर अभी तक 23400 शौचालय का ही कनेक्शन हो पाया है।

वरुणा में ऑगेर्निक प्रदूषकों की बढ़ रही मात्रा खतरनाक

BHU के Institute of environment and sustainable development के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. कृपाराम ने कहा कि वरुणा में इतना अधिक बीओडी बताता है कि पानी में ऑर्गेनिक प्रदूषक तत्वों की मात्रा काफी बढ़ गई है। इन प्रदूषकों में मरे जीव-जंतु, मलजल, सड़े-गले पदार्थ व वनस्पतियां और ऐसे कई हानिकारक तत्व मिले होते हैं कि जो कि जल चक्र और पूरे जल पारिस्थितिकी तंत्र को चौपट कर देते हैं। इससे नदी के सूक्ष्म जीवों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाता और उनकी मृत्यु होने लगती है। इस बीओडी में न तो मछलियां जीवित रह पाएंगी और न ही पानी स्नान के लायक रह जाता है। डॉ. कृपाराम ने कहा कि ऑर्गेनिक प्रदूषकों को डिकंपोज (सड़ने-गलने) होने के लिए अधिक ऑक्सीजन की जरूरत होती है जो कि नदी के ऑक्सीजन का ही इस्तेमाल करते हैं। इससे नदी के पारंपरिक जीवों को आक्सीजन नहीं मिल पाता। जिससे कुछ समय बाद उनकी माैत होने लगती है।

यह है मुख्य गड़बड़ी

वरुणा पार इलाके में ड्रेनेज सिस्टम को दुरस्त करने के लिए 2008 में 500 करोड़ रुपये जेएनएनयूआरएम योजना के तहत खर्च किया गया है। मगर समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है। यहां लोगों के करीब 29 हजार शौचालय भूमिगत जल निकासी व्यवस्था से जुड़े हुए हैं। इससे मलजल रोड साइड ड्रेन में जाता है, जहां से वह मेजर ड्रेनेज सिस्टम में मिल जाता है। इसके बाद सीधे प्राकृतिक नाले से होते हुए वरुणा नदी में मिल जाता है।

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