वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने मिलकर तिलहन फसल और प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत माने जाने वाले सोयाबीन को रोगों से सुरक्षित रखने की तकनीक खोजी है। इस तकनीक के बाद सोयाबीन की फसल में किसी तरह के पेस्टीसाइड या केमिकल के छिड़काव की जरूरत नहीं होगी। यह तकनीक खेतों को बंजर होने के बजाय सालों साल मिट्टी की ऊर्वरा शक्ति को मजबूत रखेगी।
नॉन होस्ट रजिस्टेंस पीएसएस-30 जीन की खोज की
BHU के वनस्पति विज्ञानी डॉ. प्रशांत सिंह ने केरल, उड़ीसा और अमेरिका के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक नॉन होस्ट रजिस्टेंस पीएसएस-30 जीन की खोज की है। यह सोयाबीन की फसल को ब्रॉड स्पेक्ट्रम यानी कई तरह के रोगों से मुक्त रखेगा। सोयाबीन में पाए जाने वाले 2 सबसे बड़े रोग सोयाबीन सडेन डेथ सिंड्रोम और सोयाबीन सिस्ट निमोटोड के विरूद्ध यह जीन प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करेगा।
डॉ. प्रशांत सिंह ने बताया कि यह जीन एक अर्बिडॉप्सिस के पौधे से निकाला गया है, जो कि सोयाबीन पर प्लांट इम्युनिटी की तरह से काम करता है। उन्होंने लैब में सबसे पहले सोयाबीन के एक पौधे में यह जीन इंजेक्ट कराकर उसे सडेन डेथ सिंड्रोम और सोयाबीन सिस्ट निमोटोड रोग से ग्रस्त कराया।
उन्होंने देखा कि जिस पौधे में इस जीन को ट्रांसफर किया गया था उसकी पत्तियां कुछ दिन बाद भी पहले जैसी हरी और सुनहरी ही थी। वहीं जिनमें जीन का प्रवेश नहीं कराया गया था उनकी पत्तियां सड़न का शिकार हो चुकीं थी। इससे उन्हें यह पता चला कि सोयाबीन में यह जीन थेरेपी उसकी सुरक्षात्मक शक्ति को बढ़ा रहा है।
रिसर्च का पेटेंट अमेरिका में कराया गया
डॉ. प्रशांत ने बताया कि सोयाबीन पर हुआ यह रिसर्च दुनिया के शीर्ष अमेरिकी जर्नल द प्लांट में विगत महीने प्रकाशित हुआ है। अमेरिका में इस रिसर्च का पेटेंट भी कराया गया है, जिसका उपयोग भारत में रिसर्च और प्रोजेक्ट कार्य में कर सकते हैं। डॉ. सिंह ने बताया कि भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के अनुसार हर साल सोयाबीन की 20 फीसदी फसल कीटों और रोगों से नष्ट हो जाती है।
हर साल 118 मिलियन हेक्टेयर खेत में सोयाबीन का उत्पादन होता है। 70 के दशक में इतने क्षेत्र में सोयाबीन का उत्पादन नहीं होता था मगर उत्पादकता काफी बेहतर थी। उसी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस जीन थेरेपी से सोयाबीन पौधों का इम्यून सिस्टम तैयार कर सकते हैं।