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उद्यमी के स्टार्टअप से पैसा बैंक में रहेगा सुरक्षित:वाराणसी में बनी वीएटीएम मशीन

वाराणसी।के उद्यमी अनिल सिंह रघुवंशी ने एक वी (वर्चुअल) एटीएम मशीन तैयार की है जो कि पैसा नहीं बल्कि ट्रांजेक्शन आईडी प्रिंट करके एक पर्ची देता है। इसको कैश कराने के लिए ओटीपी की जरूरत होगी। उद्यमी का दावा है कि पैसे के लेनदेन का यह वैकल्पिक स्रोत मुद्रा बाजार में पारदर्शिता बढ़ाने के साथ ही टैक्स चोरी पूरी तरह से रोक सकता है। इस मशीन को तैयार करने के बाद अनिल सिंह ने एक प्रस्ताव तैयार कर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को भेजा है। उन्हें उम्मीद है इस मशीन पर सरकार जल्द ही विचार करेगी।

कैसे काम करेगी यह मशीन

वीएटीएम में एटीएम कार्ड स्वाइप करके पर्ची निकाल सकते हैं। यह मशीन जितने कैश की जरूरत होगी, उसकी कीमत के बराबर एक पर्ची देगी, जिसमें एक ट्रांजेक्शन आईडी होगा। इस आधार पर 100 रुपये से लेकर करोड़ों का वित्तीय लेन-देन किया जा सकता है। अनिल सिंह द्वारा काश (KAASH) नाम से एक ऐप्प तैयार किया जा रहा है, जिस पर ट्रांजेक्शन आईडी इंटर करते ही भुगतान करने वाले व्यक्ति के पास एक ओटीपी जाएगा। इस ओटीपी को ऐप्प में डालते ही ट्रांजेक्शन दूसरे बैंक खाते में आसानी से हो जाएगा। वहीं काश ऐप्प नहीं है तो भीम ऐप्प और MPIN के माध्यम से भी यह भुगतान किया जा सकता है।

एक एटीएम की तिहाई लागत में बन जाएगा वीएटीएम

वीएटीएम को तैयार करने में महज 1 लाख 80 हजार रुपये का खर्च आया। वहीं बैंकों को सबसे सस्ता एटीएम मशीन स्थापित करने में 4 लाख रुपए और महंगे एटीएम की लागत 7 लाख रुपए से अधिक तक आती है। मेंटनेंस और देखरेख में 50 हजार लगते हैं। वीएटीएम का मासिक खर्च महज 5 हजार रुपए है।  2017 में मशीन तैयार होने के बाद 2018 में इसका कॉपीराइट मिला।

नोटबंदी के बाद आया यह आइडिया

अनिल सिंह ने बताया कि यह आइडिया उन्हें वर्ष 2016 में नोटबंदी के दौरान आया था, जब पैसा निकालने वालों की बैंकों के बाहर होड़ लगी थी। इसके बाद उन्होंने बंगलुरु और दिल्ली में अपने आईटी एक्सपर्ट दोस्तों की मदद से इस मशीन को आकार देने का काम किया। 2017 में मशीन तैयार होने के बाद 2018 में इसका कॉपीराइट मिला। इसके बाद लोगो रजिस्टर कराया गया। इसके बाद से वह लगातार इसका ट्रायल कर तकनीक को अपग्रेड कर रहे हैं। अनिल सिंह की टेक्निकल टीम में बनारस से शिवानी सिंह, दिल्ली के सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुजीत ठाकुर, बनारस के हार्डवेयर डिजाइनर मनीष सिंह, राजेश श्रीवास्तव, कृष्णकांत ओझा और देवांश रघुवंशी शामिल थे।

आईआईटी कानपुर से भी मिली है सराहना

अनिल बताते हैं कि कॉपीराइट के बाद आईआईटी-कानपुर के इंक्यूबेशन के लिए प्रस्ताव भेजा गया। जहां पर इस ट्रांजेक्शन मशीन के आईडिया की काफी सराहना भी हुई और बाजार में लाने के बाद उन्होंने मदद की भी पेशकश की थी। उनका दावा है कि उनके स्टार्टअप से पैसा हमेशा बैंक में सुरक्षित रहेगा। एटीएम पर होने वाली लूटपाट और काले धन की समस्या से भी निजात मिलेगी।

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