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मॉ सरस्वती केवल प्रतिमा ही नही प्रतिभा भी: संत रमेश भाई ओझा

वाराणसी। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी के कुलपति प्रो0 राजाराम शुक्ल की अध्यक्षता में आज पूर्वाह्ण वाग्देवी मंदिर कंठाभरणम् सभागार में विश्व प्रसिद्ध कथाकार एवं संत शिरोमणि श्रद्धेय आचार्य श्री रमेश भाई ओझा ‘‘भाई जी‘‘ ने काशी के उद्भट एवं अति विशिष्ट 11 विद्वानों में से उपस्थित 10 विद्वानों को चन्दन,माला,नारिकेल,अंग वस्त्रम ,द्रव्य देकर सम्मानित किया गया।
उस दौरान सन्त प्रवर श्री रमेश भाई ओझा जी के द्वारा “नवविद्या भक्ती एवं मानव जीवन दर्शन” का लोकार्पण तथा सरकार की योजना :आजादी का अमृत महोत्सव” का शुभारंभ भी किया गया।
उक्त कंठाभरणम् में संत शिरोमणि पं. आचार्य श्री रमेश भाई ओझा ने कहा कि सरस्वती जी की प्रतिमा हम बनाते है और मंदिर में स्थापित करते है उस प्रतिमाओं का पूजन व प्रणाम करते है लेकिन मॉ सरस्वती केवल प्रतिमा के रूप में नही होती प्रतिभा के रूप में होती है, उन प्रतिभाओं को प्रतिष्ठित करना,उनका पूजन करना,उनका मार्ग दर्शन करना और उनका आशिर्वाद प्राप्त करना एक विशेष है। उसी श्रृंखला में पूर्व वर्ष की भॉति इस वर्ष भी इन विशिष्ट आचार्यो को सम्मानित किया गया।
संत शिरोमणि श्री ओझा जी ने कहा कि हमारी संपूर्णता वैचारिक रूप से हो,आत्मिक हो।यह संपूर्णता की यात्रा अनवरत चलती रहे क्योंकि मनुष्य एक असीम सम्भावना का गढ है।संपूर्णता का एहसास आगे करने हेतु प्रेरित करता है।जिसमें शिक्षा का महत्व और भी अधिक बढ जाता है और देववाणी हो तो वह और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।देववाणी के पास एक अद्भुत सामर्थ्य है क्योंकि यह आंग्ल भाषा को सिखने के लिये भी आवश्यक है इसी में सम्पूर्ण विश्व के आचरण निहित हैं।विद्या अंदर से जगाती है या मॉ सरस्वती के भाव में वेद शास्त्र,संस्कृति भाषा,अध्ययन-अध्यापन के माध्यम से जन साधारण में वितरित करने वाली प्रतिभा है वह सभी ऋषि परम्परा से युक्त है जो कि अपने माध्यम से दान देने वाले लोगों का पूजन करने वाले का उपक्रम है। आज जिन दस विद्वानों का पूजन कर सम्मान किया गया वे अपने माध्यम से सम्पूर्ण संस्कृत जगत में विद्यार्थियों को विद्या दान कर राष्ट्र नायक के रूप में तैयार करते है।
संत शिरोमणि श्री ओझा जी ने कहा कि यह मॉ शारदा का प्रांगण है यहॉ के आचार्यो महापुरूषों से जितना ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है आप सभी करते रहे क्योंकि आपके पास जितना समय है ज्ञान अर्जन के लिये वह कम पड़ेगा। संसार में कुछ करना है तो संस्कृत की सेवा अनवरत करते रहें। स्वयं को विद्या रूपी ज्ञान से समृद्धिशाली बनाइयें तथा स्वयं तैयार होकर सम्पूर्ण देश में संस्कृत के रस के धार का प्रवाह करियें। जो देता है वह देवता होता है ब्राम्हण देने के लिये होता है मुझे क्या मिल रहा है उसकी चिन्ता न करें । जहॉ वे शिष्यों को देखते है तत्काल अर्न्तमन विद्यादान देने के लिये सदैव आतुर रहते है।
उदाहरण के रूप में रामकृष्ण परमहंस जी ने स्वामी विवेकानन्द जी को अपने शिष्य के रूप में ज्ञान के रस से सरोवार कर दिया जो कि अपने कृत्यों से राष्ट्र व गुरू दोनों को अमरत्व प्रदान किया। यदि आचार्य विद्या रूपी दान का प्रवाह रोक दे तो वह अमरत्व से विमुख हो जाता है।
संत शिरोमणि श्री ओझा जी ने कहा कि दुनिया में जो भी आये है सभी के अपने मूल कार्य एवं कर्तव्य है जैसे गोमाता की अनिर्वायता है वह दुध दे अगर नही देगी तो उसे ही कष्ट होगा। इसी तरह से मॉ भी अपने जन्में बच्चे को दुग्धपान कराती है वह उसकी अनिर्वायता है वह सदैव देने के लिये होती है जितना शरीर के लिये आहार आवश्यक है उतना शरीर के लिये श्रम भी आवश्यक है श्रम से तन और प्रेम से मन स्वस्थ रहता है। इस लिये श्रम के साथ श्रम औ प्रेम दो मकारान्त पद का जहॉ प्रयोग होता है वही आश्रम है इसी तरह से सभी गुरूजन मॉ सरस्वती की कृपा से अविरण ज्ञान धारा को प्रवाहित करते है यह उनकी अनिर्वायता है तथा शिष्यों को अपने गुरूओं का सदैव सम्मान आदर करना चाहियें यह उनकी अनिवार्यता है।
उस दौरान स्वागत एवं अध्यक्षयीय उद्बोधन में कुलपति प्रो0 राजाराम शुक्ल ने कहा कि आज का यह अति विशिष्ट सम्मान कार्यक्रम और विशिष्ट विद्वानों के साथ-साथ विश्व प्रसिद्ध संत का आगमन निश्चित ही एक विशेष संयोग ही नही है बल्कि हम सभी के ज्ञानपुंजी की एक तस्वीर है।
कुलपति प्रो0 शुक्ल ने कहा कि मॉ वाग्देवी के प्रतिमा के साथ-साथ प्रतिभाओं का सम्मान करके निश्चित ही मॉ वीणाधारिणी का पूजन करने जैसा कार्य है।
उन्होने कहा कि यहां के कुलपति आचार्य राजाराम शुक्ल ने अपना सम्पूर्ण जीवन संस्कृत शास्त्रों के संवर्धन पोषण के लिये समर्पित किया है इसलिये हम लोगों ने एक संस्था के माध्यम से इस वर्ष का ब्रह्मर्षि की उपाधि के लिये आचार्य राजाराम शुक्ल का चयन किया गया है शीघ्र भव्य समारोह मे यह उपाधि दी जाएगी।
सम्मान समारोह के प्रारम्भ में संत शिरोमणि श्री रमेश भाई ओझा जी के द्वारा विधिवत पूजन किया गया तथा वैदिक एवं पौराणिक मंगलाचरण करके कार्यक्रम की शुरूआत की गयी जिसके उपरान्त श्री ओझा जी के द्वारा काशी के विशिष्ट 11 विद्वानों प्रो यदुनाथ प्रसाद दुबे,प्रो जयप्रकाश नारायण त्रिपाठी,प्रो गिरिजेश कुमार दिक्षित,प्रो जानकी प्रसाद द्विवेदी,आचार्य गपति शास्त्री एताल,आचार्य विन्देश्वरि प्रसाद मिश्र,आचार्य श्री विजय कृष्ण भागवत,आचार्य कृष्ण कान्त शर्मा,आचार्य महादेव घनपाठी,आचार्य हरे राम त्रिपाठी,आचार्य बालशास्त्री आदि विद्वानों का सम्मान नारिकेल,अँगवस्त्रम और द्रव्य देकर आदि को चन्दन,माला,नारिकेल,अंग वस्त्रम् एवं द्रव्य देकर सम्मानित किया गया इसके साथ ही कुछ युवा विद्वानों को संस्कृत शास्त्र के प्रसार के लिये सम्मानित गया।
उक्त कार्यक्रम में कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल जी के द्वारा संत शिरोमणि श्री ओझा जी का चन्दन,माला और अंगवस्त्रम के द्वारा स्वागत एवं अभिनन्दन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ दिनेश कुमार गर्ग,धन्यवाद ज्ञापन प्रो महेंद्र पान्डेय ,मंगलाचरण डॉ विजय शर्मा ने किया।
उस दौरान प्रो हरिप्रसाद अधिकारी,प्रो रामपूजन पान्डेय,प्रो सुधाकर मिश्र,प्रो प्रेम नारायण,प्रो शैलेश कुमार मिश्र,प्रो आशुतोष मिश्र,प्रो अमित कुमार शुक्ल सहित कर्मचारी,छात्र-छात्राएँ आदि उपस्थित थे।

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