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तिरंगे के बेजा इस्तेमाल पर लगे रोक- अनिरुद्ध नारायण सिंह

वाराणसी। वरिष्ठ अधिवक्ता और राजनीतिक – सामाजिक कार्यकर्ता अनिरुद्ध नारायण सिंह ने भारत के राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन को पत्र लिख कर उनका ध्यान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों द्वारा चुनाव, आंदोलन तथा अन्य सभा सम्मेलनों में बेजा इस्तेमाल किये जाने पर वैधानिक प्रतिबंध लगाए जाने का अनुरोध किया है।

अनिरुद्ध नारायण सिंह ने पत्र में कहा है कि इस सम्बंध में कानूनी रोक न होने से राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा और मर्यादा प्रभावित हो रही है, अतः राष्ट्र हित में इसे स्वतः संज्ञान में लेकर संवैधानिक प्रमुखों और संस्थाओं को आवश्यक कदम उठाया जाना चाहिए ।उंन्होने पत्र में आगे लिखा है कि भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज को इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्‍वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी।हमारे लिए तिरंगा बेहद महत्वपूर्ण और गौरव का विषय है।इस नाम के पीछे की वजह इसमें इस्तेमाल होने वाले तीन रंग हैं। यह हर वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी को सम्पूर्ण राष्ट्र में पूरे सम्मान और गौरव के साथ फहराया जाता है पर विचारणीय प्रश्न यहकि जो ध्वज हमारी राष्ट्रीय एकता , अखंडता और सम्प्रभुता का प्रकटीकरण है उसे चंद बदलाव के साथ किसी राजनीतिक दल के ध्वज के रूप में प्रयुक्त करना क्या उचित है ? क्या यह हमारी राष्ट्रीय भावना के साथ खिलवाड़ नहीं ?

राजनीतिक दलों ने अपने दल के झंडों को राष्ट्रीय ध्वज में प्रयुक्त चक्र की जगह अपने अपने प्रतीक चिन्हों का प्रयोग करते हुए हूबहू तिरंगे की तरह बना रखा है , इस मामूली हेर फेर से न सिर्फ भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है बल्कि तिरंगे के सम्मान और गौरव के हनन के साथ ही संविधान का उल्लंघन भी है। तिरंगे में प्रयुक्त तीन रंग हम सब की राष्ट्रीय भावना से जुड़े है, उसके इस कदर बेजा इस्तेमाल की कत्तई इजाजत नहीं होनी चाहे। हद तो तब हो जाती है, जब ऐसे राजनीतिक दलों के सभा, जुलूस और प्रदर्शनों के बाद तिरंगे झंडे को उसकी मर्यादा और गरिमा की अनदेखी करते हुए उसे यहां वहां फेंक दिया जाता है और लोग उसपर पाँव रखकर गुजरते रहते हैं । इस बात को हम सब को समझना जरूरी है कि किसी भी राजनीतिक दल के डंडे में तिरंगे से मिलते जुलते झंडों का प्रयोग राष्ट्र और संविधान दोनों का अपमान है। अक्सर देखा गया है कि अपने देश में, अपनी ही निर्वाचित सरकारों के खिलाफ आंदोलनों में तिरंगे का प्रयोग किया जाता है आपसे विनम्र आग्रह है कि उपरोक्त तथ्य को संज्ञान में लेकर उन सभी राजनीतिक दलों को ऐसा नहीं करने न्यायिक आदेश व निर्देश दिया जाए जो अपनी पार्टी के झंडों में तिरंगे में प्रयुक्त तीनो रंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस पर पूरी पाबंदी न सिर्फ राष्ट्रीय भावना के सम्मान के लिए जरूरी है, बल्कि संविधान की रक्षा की दृष्टि से भी आवश्यक है।

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