लखनऊ। जिले में ओला कैब और महिंद्रा फर्स्ट च्वाइस कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया गया है। 759 ड्राइवरों काआरोप है कि वे जिन गाड़ियों के लोन की किस्त भर रहे थे, ओला ने उन्हें चुपके से महिंद्रा को बेच दिया। इसके मालूम चलते ही बड़ी संख्या में ड्राइवर्स ने विभूतिखंड थाने में हंगामा शुरू कर दिया। ड्राइवर्स की तहरीर पर पुलिस ने दोनों ही कंपनियों पर FIR दर्ज कर ली है। मामले में दोनों कंपनियों का पक्ष लेने की कोशिश की जा रही है।
2017 में शुरू की थी स्कीम
कैब ड्राइवर्स का कहना है कि 2017 में ओला ने स्कीम शुरू की जिसमें चालक 21 हजार रुपए डिपॉजिट मनी जमा करता था। इसके बाद कंपनी उसे कैब खरीदकर देती। इसकी 25 हजार प्रति माह या 830 रुपए रोजाना क़िस्त जमा करनी थी। साढ़े चार साल बाद यह वह गाड़ी ड्राइवर के पक्ष में फ्री होल्ड हो जाती। स्कीम के तहत लखनऊ के 759 ड्राइवरों ने डिपॉजिट करके गाड़ी ली थी।
20 मार्च 2020 में कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया था। जिसकी वजह से काम बंद था। ड्राइवर किस्त नहीं दे पा रहे थे। ऐसे में ओला कंपनी की तरफ से गाड़ियां इंदिरानगर तकरोही के पास एक गेस्ट हाउस में खड़ी करवा दी गईं। ड्राइवर्स का कहना है कि कंपनी ने उसने कहा था कि लॉकडाउन खुलने के बाद गाड़ियां लौटा दी जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आरोप है कि इसी दौरान कंपनी ने इन गाड़ियों को उन्नाव के सोहरामऊ स्थित यार्ड भेज दी।
नीलामी रोकी गई, जांच शुरू
कैब ड्राइवर्स के मुताबिक पहला लॉकडाउन खत्म होने के बाद से ही वह लोग अपनी गाड़ियां लेने की कोशिश कर रहे थे। इस बीच कोरोना की दूसरी लहर से आंशिक लॉकडाउन लग गया। 27 जुलाई को पता चला कि कंपनी की तरफ से दी गई गाड़ियों की नीलामी हो रही। छानबीन करते हुए वह सोहरामऊ पहुंचे तो पता चला कि महेंद्रा फर्स्ट च्वाइस के साथ मिलकर गाड़ियों की नीलामी की जा रही है। ड्राइवरों ने सोहरामऊ एसडीएम से मुलाकात कर उन्हें घटना के बारे में बताया। जिसके बाद नीलामी पर रोक लगा दी गई थी। इसके बाद उन्होंने डीसीपी पूर्वी से मुलाकात कर घटना की जानकारी दी। डीसीपी के आदेश पर विभूतिखंड कोतवाली में ओला कंपनी और महिंद्रा फर्स्ट च्वाइस के खिलाफ धोखाधड़ी और गबन की धारा में मुकदमा दर्ज किया गया है।