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जब अपनों ने किया किनारा, वृद्धाश्रम ने दिया सहारा

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस (1 अक्टूबर) पर विशेष

जब अपनों ने किया किनारा, वृद्धाश्रम ने दिया सहारा

अब तो आश्रम ही है वृद्धजनों का घर

यहां रहने वाली महिलाएं ही एक दूसरे के लिए है परिवार

वाराणसी, 1 अक्टूबर 2021 । एक समय था जब उन्होंने अपनी संतानों को ऊंगली पकड़कर चलना सिखाया था। हर मां की तरह उन्हें भी उम्मीद थी कि उनकी संतान बड़े होकर उनके सपनों को साकार करने के साथ ही बुढ़ापे की लाठी भी बनेगी। लेकिन जब बुढ़ापे में सहारा देने का वक्त आया तो उन सभी ने किनारा तो किया ही उन्हें दर-दर भटकने को भी मजबूर कर दिया।

ऐसी ही बेसहारा बुजुर्ग महिलाओं का सहारा बना हुआ है दुर्गाकुण्ड स्थित वृद्धाश्रम। महिला कल्याण विभाग की देखरेख में संचालित इस आश्रम में इन दिनों 18 बुजुर्ग महिलाओं ने शरण ले रखा है। इन सभी के जीवन की एक दर्द भरी कहानी है। इन्हीं में शामिल हैं उड़ीसा की रहने वाली रामवती (96 वर्ष) ( परिवर्तित नाम) भी। रामवती बताती हैं उनका भी कभी भरापूरा परिवार था। पति टैक्सी ड्राइवर थे। कम आय में ही सही लेकिन उनका खुशहाल जीवन था। सबकुछ अच्छा चल रहा था लेकिन अचानक उनके जीवन में एक तूफान आ गया। एक सड़क दुर्घटनां में उनके पति की मौत हो गयी। उस समय उनका इकलौता बेटा 22 वर्ष का था। पति की मौत के बाद उन्हें उम्मीद थी कि बेटा उनका सहारा बनेगा लेकिन जैसे-जैसे वह अपने पैरों पर खड़ा होता गया उसने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी। बहू के आने के बाद तो उनके साथ ऐसा बुरा व्यवहार होने लगा जैसे वह उनकी दुश्मन हों। रोज-रोज की प्रताड़ना से आजिज आकर उन्होंने घर छोड़ने का मन बनाया और अपनी बहन के सहयोग से काशी चली आयीं। काशी की गलियों में कुछ दिन वह भटकती रहीं। दूसरों से मांग कर भी खाया। तभी एक स्थानीय व्यक्ति के सहयोग से वह इस आश्रम में पहुंची। लगभग दस वर्ष से वह इस आश्रम में रह रहीं है। अब तो यही उनका घर है और यहां रहने वाली अन्य महिलाएं उनका परिवार।

दरभंगा-बिहार की रहने वाली ममता पाण्डेय (95 वर्ष) ( परिवर्तित नाम) की भी कहानी बेहद दर्द भरी है। उनके पति व्यवसाय करते थे। काफी खुशहाल जीवन चल रहा था उनका। उनको कोई पुत्र नहीं। एक बेटी है जिसकी बड़ी धूमधाम से उन्होंने उसकी शादी की थी। ममता बताती हैं कि लगभग 12 वर्ष पूर्व उनके पति का निधन हो गया । उन्हें सहारा देने के नाम पर बेटी-दामाद उनके ही घर पर ही आकर रहने लगे। दामाद ने उन्हें धोखे में रख कर खेत और मकान अपने नाम करा लिया। फिर उनके साथ ऐसी प्रताड़ना होने लगी जिसने उन्हें घर छोड़ने को मजबूर कर दिया। आठ वर्ष पूर्व घर से नाराज होकर वह निकलीं और ट्रेन पकड़कर काशी चली आई। सड़क पर भटक रही थी तभी एक पुलिस वाले ने उन्हें इस आश्रम तक पहुंचाया। अब वह इस आश्रम में जीवन के अंतिम पल तक रहना चाहती हैं। यहां रहते हुए भजन – पूजन में उनका पूरा समय कट जाता है। यहां रहने वाली अन्य बुजुर्ग महिलाएं उनकी सहेलियां बन चुकी है। उनसे बातचीत कर वह अपना दुखदर्द बांट लेतीं हैं।

भजन-पूजन में गुजरता है दिन
वृद्धाश्रम (राजकीय वृद्ध एवं अशक्त गृह) के अधीक्षक देवशरण सिंह बताते हैं कि यहां रह रही बुजुर्ग महिलाओं के दिनचर्या की शुरुआत प्रातः काल में भजन-पूजन से होती है। आश्रम परिसर में स्थित मंदिर में प्रातःकाल की आरती के बाद लगभग छह बजे वह सभी लोग एक साथ नाश्ता करती हैं। पूर्वाहन 11 बजे तक भोजन परोस दिया जाता है। सायं तीन से छह बजे तक पुनः सामूहिक भजन का कार्यक्रम चलता है। मंदिर में पुनः शाम की आरती के बाद सतसंग में सभी महिलाएं शामिल होती है।

अपनापन का एहसास देने का प्रयास
अधीक्षक देवशरण सिंह बताते हैं कि असहाय बुजुर्ग महिलाओं को सहारा देने के लिए महिला कल्याण विभाग इस वृद्धाश्रम का संचालन करता है। यहां रहने वाली हर बुजुर्ग महिला को भोजन, चिकित्सा की व्यवस्था निःशुल्क की जाती है। वह कहते हैं कि जीवन के अंतिम पड़ाव में अपनों से ठुकराई वृद्ध महिलाओं को दर-दर भटकना न पड़े इसके लिए हम उन्हें इस आश्रम में रख कर उन्हें अपनापन का एहसास कराने की कोशिश करते है।

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