वाराणसी। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में रहने वाले लोगों ने शायद कभी सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा कि उनके इतने भी बुरे दिन आ जाएंगे। अपने प्रियजनों की मौत के बाद उन्हें चार कंधा देने वालों के संकट से जूझने के साथ ही श्राद्ध कर्म कराने वालों का भी टोटा पड़ जाएग।
कोरोना संकट के चलते काशीवासी ऐसी ही समस्याओं से इन दिनो जूझ रहे है।
काशी के मुख्य दो श्मशान मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर इन दिनों दाह संस्कार करने वालों की लंबी कतारें लगी हुई है। शव जलाने के लिए लोगों को 10 से 12 घंटे तक इंतजार करना पढ़ रहा है। आमतौर पर मणिकर्णिका घाट पर सौ के आसपास चिताएं जलती थी, लेकिन इन दिनों हो रही मौतों के चलते यहां लगभग 200 शव प्रतिदिन चलाए जा रहे है। यहीं हाल हरिश्चंद्र घाट का है। वहां भी 100 से अधिक शव हर रोज जलते है। दाह संस्कार के लिए यहां भी लोगों के घंटो इंतजार करना पड़ रहा है।
काशी के अन्य श्मशान सरायमुहाना व अन्य की भी लगभग यहीं स्थिति है। ऐसा कोई श्मशान नहीं है जहां चिताओं को जलाने के लिए लोगों को इंतजार न करना पड़े। हालात इस कदर बिगड़े हुए हैं कि कई ऐसे शव श्मशान पर लाएं जाते है, जिन्हें चार कंधा देने वाले भी नसीब नहीं होते
एक तो कोरोना का दहशत, दूसरे आत्मीयजनों के भी बीमार होने के कारण शव यात्रा में गिने-चुने लोग ही शामिल हो पा रहे है। नतीजा यह है कि चिता तक शव को पहुंचाने के लिए ठेके पर पर मजदूर लिए जा रहे हैं शव को चिता तक पहुंचाने के लिए यह मजदूर शव यात्रियों से कहीं-कहीं 5 से 10000 भी वसूल ले रहे है।
मजबूरी में शव यात्रियों को उन्हें भुगतान करना भी पड़ रहा है। सबसे बुरी हालत उन लोगों की है। जिनकी मौत कोरोना की चलती हुई है। पीपीई किट में शव को देखते ही घाट के किनारे रहने वाले मजदूर यह भली-भांति समझ जाते हैं की इसे चिता तक पहुंचाने में उनकी मदद ली ही जाएगी। इस मजबूरी का फायदा उठा कर वह मनमानी रकम वसूल रहे है।
मोक्ष नगरी काशी में इन दिनों मोक्ष दाताओं यानी मृत्यु के बाद श्राद्ध कर्म कराने वाले ब्राह्मणों की भी कमी हो गई है दसवां व त्रिरात्रि पर पिंडदान कराने वाले ब्राह्मणों का भी अभाव झेलना पड़ रहा है। यहीं नहीं 13 मई के कार्यक्रम के लिए खोजने से ब्राह्मण भी नहीं मिल रहे है। शव संकट करुणा के ही चलते हुआ है। अपने प्रियजन का श्राद्ध कराने के लिए लोग परेशान तर्पण आदि कैसे हो?
इसकी चिंता उन्हें सताए जाती है खोजने से ब्राह्मण नहीं मिल रहे है कि मृत आत्मा की शांति के लिए पूजा—पाठ कराया जा सके। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि श्राद्ध कर्म कराने के लिए सामाजिक संस्थाओं को सामने आना पड़ेगा। ऐसी लगभग आधा दर्जन से अधिक संस्थाएं काशी में इन दिनों काम कर रही है। जो सिर्फ दर्पण पिंडदान आदि का काम करा रही है।